बिंदु-बिंदु विचार (2)

अधिवक्ताओं द्वारा अधिवक्ता का उत्पीड़न:-
अधिवक्ता यानी वकील। समाज का प्रतिष्ठित-सम्मानित तबका। फिर ये ऐसी हरकतें क्यों करते हैं जिससे कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली की प्रतिष्ठा एवं गरिमा पर आंच आती है? गत सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव भाटिया गौतमबुद्धनगर (नोएडा) की एक अदालत में पहुंचे तो वकीलों की भीड़ ने उनके साथ मारपिटाई और बदसलूकी की। मारपीट करने वाले अधिवक्ताओं की आपत्ति थी कि वकीलों की हड़ताल के बीच वे अदालत में क्यों पहुंचे ?
सुप्रीम कोर्ट ने श्री भाटिया के साथ हुई मारपीट पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कहा है कि वादकारियों के हितों की उपेक्षा कर हड़ताल कर देना और किसी वकील के साथ हाथापाई मारपीट, गाली-गलौच करना अनुचित है। देखना है कि शीर्ष न्यायालय इस बेहूदगी पर क्या फैसला करता है।

सिर्फ 40,00,000 रुपये!
बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पूछती हैं कि जब भाजपा को 400 सीटें मिलने जा रही हैं तो वह ईडी-सीबीआई के छापे क्यों लगवा रही है? कहने का मतलब यह हुआ कि छापे वोट लेने के लिए डाले जाते हैं, जब बिना छापों के 400 सीटें मिल रही हैं तब ईडी के छापे बन्द करो। दुनिया ने देखा कि ममता के मंत्रियों व टीएमसी नेताओं के ठिकानों पर पड़े छापों में सीबीआई एवं ईडी ने हजारों करोड़ रुपयों की नकदी बरामद की। अभी ममता सरकार के एक मंत्री चन्द्रनाथ सिन्हा के बीरभूम आवास पर छापे में 40 लाख रुपये बरामद किये गए। जहाँ ममता के मंत्रियों और उनके चहेतों के पास से हजारों करोड़ रुपये की नकदी बरामद होती हो, वहां मात्र 40 लाख की मामूली रकम मिलना बड़ा ही शर्मनाक है। यह तो ममता की बेइज्जती है। ऐसे में ममता का बौखलाना स्वाभाविक है।

पर सुनेगा कौन?
भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा है कि राजनीतिक भ्रष्टाचार के कारण लोकतंत्र को खतरा उत्पन्न हो गया है। राजनीति का स्तर इतना नीचे गिर गया है कि लोग वोट डालने से भी कतराने लगे हैं। कुरैशी जी ने ठीक ही कहा। अब तो सभी भ्रष्टाचारी एक मंच पर आकर मोर्चा बना रहे हैं। उन्हें भ्रष्टाचार रोकने से लोकतंत्र को खतरा दिखाई देता है। बेचारा लोकतंत्र क्या करे?

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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