मेघालय के राज्यपाल और खांटी जटियात इलाके के मूलवासी सत्यपाल मलिक ने एक बार फिर कहा है कि केंद्र सरकार को आंदोलनरत किसानों को दिल्ली से खाली हाथ वापिस नहीं भेजना चाहिए। श्री मलिक पहले भी नए कृषि कानून को काला कानून बताने वाले किसान नेताओं की तरफदारी में बयान दे चुके हैं। अमीनगर सराय में अपने सम्मान समारोह में किसान आंदोलन का जिक्र मलिक साहब ने इस तरह से किया मानो किसान तो कानूनों में संशोधन चाहते हैं, लेकिन यह केंद्र सरकार ही है जो आंदोलनकारियों को खाली हाथ लौटाना चाहती है। सत्यपाल मलिक सुलझे हुए चतुर राजनीतिज्ञ हैं। सांसद, केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल जैसे पदों का निर्वहन करने का लंबा अनुभव उन्हें है। वह क्या कह रहे हैं और उनके कथन का क्या फलितार्थ है, वह बखूबी जानते हैं। अतः किसान आंदोलन, कानून काले होने या आंदोलनजीवियों की भूमिका के विषय में उन्हें कुछ बताने समझाने की आवश्यकता नहीं है।
हमें कड़वी सच्चाई बयान करना हर एक शख्स के बूते से बाहर है। मुझे एक घटना याद आती है। दशकों पहले स्वर्गीय राजपाल आर्य ने आर्य समाज शताब्दी समारोह में चौधरी चरण सिंह को मुख्य अतिथि के रुप में निमंत्रित किया था। मंच पर उनके साथ तत्कालीन सिंचाई उप-मंत्री सईद मुर्तजा भी बैठे थे। तभी किसी मुंहफट वक्ता ने कहा कि ‘आप गोवंश के संरक्षण की बात करते हैं और मंच पर गोभक्षक को बैठाते हैं।’ इस पर चौधरी चरण सिंह ने बिना उत्तेजित होते हुए कहा- ‘मैं ऋषि दयानंद का अनुयायी हूं। हिंदू और गोभक्त होने पर मुझे गर्व है। राजनीति मेरे लिए कुछ मायने नहीं रखती।’ वाकई सच बोलने का जिगरा प्रभु ने हर एक को नहीं दिया है। हां, चालाक लोग झूठ को सच के रूप में पेश करने की महारथ जरूर हासिल कर लेते हैं।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार किसान आंदोलन एक निश्चित तिथि तक चलना तय है। यह भी सब जान चुके हैं कि आंदोलन का मकसद क्या है और पर्दे के पीछे कौन सी ताकतें काम कर रही है। सत्यपाल मलिक हों या अन्य वे लोग जो चाहते हैं कि किसान खाली हाथ न लौटें पहले केंद्र सरकार की मंशा पर शक करना छोड़ें और आंदोलनकारियों को सच्चाई स्वीकार करने की सलाह दें। यदि वे ऐसा कर सके तो यह बड़ी देश सेवा होगी। यदि वे ऐसा नहीं करते तो माना जाएगा कि कानून काले नहीं है, उन लोगों के दिल ही काले हैं जो सच को जानबूझकर न समझने का एक स्वांग कर रहे है।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात