बिजली की जरूरत वाले गांव असम और नागालैंड के बीच सीमा विवाद में फंसे

असम और नगालैंड के बीच करीबन पांच दशकों से भी ज्यादा समय से सीमा विवाद चल रहा है। दोनों देशों के बीच कुल 12 स्थानों को लेकर विवाद है। नजदीकी भविष्य में इतने लंबे समय से जारी इस विवाद के खत्म होने के आसार भी नजर नहीं आते। हालांकि दोनों राज्यों की सरकारों और केंद्र सरकार ने इस दिशा में कई अहम कदम उठाए हैं। आज हम दोनों राज्यों के सीमा विवाद से प्रभावित उन लोगों के बारे में बात करेंगे जिन्हें आजादी के इतने सालों के बाद भी कई मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल पा रही। दोनों राज्यों के विवाद के कारण ये आज भी ना केवल अंधेरे में रहने पर मजबूर हैं बल्कि आने-जाने के लिए उन्हें ना तो उनके पास बेहतर सड़क है और ना ही बच्चों के लिए कोई स्कूल। हम बात कर रहे हैं असम और नगालैंड कि गोलाघाट-वोखा सीमा से सटे मेरापानी के एक गांव की। यह असम और नागालैंड के बीच की रस्साकशी में फंसा हुआ है और दोनों राज्य इस जमीन पर अपने स्वामित्व का दावा करते हैं। बावजूद इसके मूलभूत सुविधाओं के लिए दोनों में से कोई कदम नहीं उठा रहा। अगर कोई एक राज्य कुछ करने का प्रयास भी करता है तो दूसरा उसमें अडंगा लगा देता है। 

दोनों राज्यों के अपने-अपने दावे
बता दें कि उपेक्षा का शिकार यह गांव नागालैंड सीड फार्म परिसर में आता है। यह सीड फार्म भी मेरापानी के एक विवादित क्षेत्र में स्थित है। इस पर असम का दावा है कि यह भूमि उसके गोलाघाट जिले में आती है, वहीं, नगालैंड का दावा है कि ये उसके वोखा जिले में आता है।  

गांव में तैनात है केंद्र की पुलिस
इस गांव के बारे में एक हैरान करने वाली बात यह है कि यहां के लोग असम में गोलाघाट निर्वाचन क्षेत्र के मतदाता हैं, लेकिन जिस क्षेत्र में वे रहते हैं वह नागालैंड के बीज फार्म के परिसर में आता है। इस पूरे सीड फार्म वाले क्षेत्र को ‘विवादित क्षेत्र’ का नाम दिया गया है। इतना ही नहीं, यहां जब भी कभी कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा होती है तो इन दोनों राज्यों में से किसी की पुलिस नहीं पहुंचती। यहां कानून और व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए सीआरपीएफ को तैनात किया गया है।

नहीं मिल रही बुनियादी सुविधाएं
गोलाघाट-वोखा सीमा से सटे मेरापानी इलाके के गांव के लोग आज भी अंधेरे में रहने पर मजबूर हैं। यहां बिजली कनेक्शन जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। इतना ही नहीं, यहां के लोगों को  पीने के लिए साफ पानी भी नहीं मिल पाता। गांव में रहने वाले एक व्यक्ति भेंगरा ने अपनी बदहाल जिंदगी के बारे में बताया कि हम दोनों राज्यों के बीच नियंत्रण के इस संघर्ष में फंस गए हैं और बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं।  

बिजली देने के लिए हुई कई बार पहल लेकिन…
भेंगरा ने बताया कि असम और नागालैंड दोनों सरकारों ने कई बार गांव में बिजली के लिए पहल की। यहां के लोगों को कनेक्शन देने का भी प्रसाय किया यहां तक कि गांव में खंभे भी खड़े कर दिए गए। लेकिन हमारा गांव विवादित क्षेत्र के अंतर्गत आता है ऐसे में किसी भी विकासात्मक गतिविधि के लिए दोनों को अपने समकक्ष राज्य की सहमति लेनी पड़ती है। ऐसे में जब भी किसी ने कोई प्रयास किया तो दूसरी सरकार उस पर रोक लगा देती है। 

कई बार लगाई सरकार से गुहार पर कोई सुनने वाला नहीं…
अपनी दुर्दशा के बारे में गांव की एक अन्य ग्रामीण महिला सुशीला बागा ने भी बताया। उन्होंने कहा कि उन्होंने और कई ग्रामीणों ने अपने स्थानीय विधायक अजंता नियोग से कई बार गांव में बिजली-पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए गुहार लगाई है। उनके आश्वासन के बावजूद अभी तक कुछ नहीं हुआ। 

सोलर लाइट के लिए मिले थे रुपये 
सुशीला बागा ने आगे बताया कि विधायक अजंता नियोग ने उनके गांव में लगभग 30-40 परिवारों को सोलर लाइट लगाने के लिए सभी को 7000-7000 रुपये दिए थे। लेकिन जहां इतनी समस्याएं हो वहां उन रुपयों को ज्यादातर ने अन्य जरूरी आवश्यकताओं पर खर्च कर दिया। 

बच्चों का भविष्य अंधकारमय
गांव की एक बेहद बुजुर्ग पुरबा कुरवा ने बताया कि कनेक्टिविटी ना होने के कारण उनके बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो गया है। वे अपनी शिक्षा जारी नहीं रख पा रहे हैं। अपने समय को याद करते हुए पुरबा ने कहा कि हमें पढ़ने का अवसर नहीं मिला और अब हम मजदूरी करके अपना और परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। अब, हमारे बच्चों को भी उस अवसर से वंचित किया जा रहा है। हमारे पूर्वजों के यहां बसने के बाद से गांव की स्थिति ऐसी ही है। सभी एक तरह के अंधेरे में जी रहे हैं।  

सीड फार्म की स्थापना के समय बसाए गए थे आदिवासी समुदाय के लोग
गांव के लोगों की दुर्दशा के बारे में पास के ही दूसरे गांव के एक बुजुर्ग व्यापारी सोमनाथ सुब्बा ने भी बताया। उन्होंने कहा कि आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाले ये लोग उस समय यहां आए थे जब यहां फार्म सीड की स्थापना की जा रही थी। उस समय इन लोगों को श्रमिक के रूप में लाया गया था। उन्होंने आगे कहा कि सड़क, पुल या बिजली नहीं होने के कारण इन लोगों को होने वाली कठिनाइयों को हम देखते हैं। हमने दोनों राज्यों की सरकारों से भी कई बार अनुरोध किया है कि वे एक साथ ये बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए कोई रास्ता निकालें। 

दोनों राज्यों को जोड़ने वाली सड़क भी उपेक्षा का शिकार
इसी इलाके में सीमा विवाद से प्रभावित गांव से लगभग 8 किमी दूर गोलाघाट और वोखा को जोड़ने वाली सड़क भी उपेक्षा का शिकार है। इसका एक बड़ा हिस्सा दोनों पड़ोसी राज्यों के विवाद में फंस गया है। दोनों राज्यों में से कोई भी दूसरे को इसकी मरम्मत करने की अनुमति देने को तैयार नहीं है। वहीं के एक दुकानदार ने बताया कि सड़क का निर्माण 1985 के आसपास हुआ था। सड़क के निर्माण को लेकर उस समय दोनों राज्यों के बीच खूनी संघर्ष भी हुआ, जिसमें कई लोग मारे गए थे। उसके बाद से किसी ने भी उसकी सुध नहीं ली। अब आलम यह है कि सड़क का एक हिस्सा पूरी तरह से टूट चुका है। बारिश के मौसम में वहां गंभीररूप से जल भराव होता है। लोगों के गुजरने भर की भी जगह नहीं बचती।  

असम नहीं दे रहा अनुमति
सड़क की मरम्मत के बारे में जब स्थानीय अधिकारियों से पूछा गया तो एक ने बताया कि नगालैंड टूटे हिस्से की मरम्मत कराने को तैयार है लेकिन असम की शांति समिति ने इसकी अनुमति देने से इनकार कर दिया है। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने दावा किया कि असम को इस बात का डर है कि अगर नगालैंड सड़क का निर्माण करता है, तो वह क्षेत्र के स्वामित्व पर अपना दावा और मजबूत कर देगा। 

1963 में नगालैंड के गठन से शुरू हुआ विवाद 
गौरतलब है कि साल 1963 में नागालैंड राज्य असम से अलग हुआ था। दोनों राज्य 512.1 किमी लंबी सीमा साझा करते हैं।  राज्यों के अलग होने के बाद से ही दोनों के बीच अंतर-राज्यीय सीमा विवाद छिड़ गया। 1962 के नागालैंड राज्य अधिनियम में  1925 की अधिसूचना के अनुसार सीमाओं को परिभाषित किया गया था। इसमें नगा हिल्स और तुएनसांग क्षेत्र (NHTA) को एक नई प्रशासनिक इकाई के रूप में एकीकृत किया गया था और उन्हें एक स्वायत्त क्षेत्र बनाया गया था। असम दिसंबर, 1963 में बने नगालैंड के कानून के तहत सीमा को मानती है और यही दोनों राज्यों के बीच विवाद का प्रमुख कारण है। चूंकि नागालैंड ने अधिसूचित बॉर्डर को स्वीकार नहीं किया और मांग की कि नए राज्य में नागा पहाड़ियों और असम के तत्कालीन उत्तरी कछार और नागांव जिलों में सभी नागा-बहुल क्षेत्रों को शामिल किया जाना चाहिए। ऐसे में असम और नागालैंड के बीच सीमा संघर्ष शुरू हुए। 1965 में पहली बार सीमा विवाद सामने आया। इसके बाद 1968, 1969 , 1979,1985, 2007 और 2014 और 2015 में भी कई बार दोनों की सीमाओं पर विवाद सामने आए।

फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामला
बाद में असम सरकार ने सीमा की पहचान और सीमा विवादों को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक मामला दायर किया था जो अभी भी लंबित है। नगालैंड की सरकार का हमेशा इस बात पर फोकस रहा है कि साल 1960 के जिस 16 सूत्रीय समझौते के तहत नगालैंड का गठन हुआ, उसमें सभी नगा इलाकों की बहाली भी शामिल थी। जिन्हें वर्ष 1826 में अंग्रेजों ने असम पर कब्जा करने के बाद नगा पहाडियों से अलग कर दिया था। उन्हें नगालैंड में शामिल किया जाए।  

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