सपा-रालोद के गठबंधन से क्या होगा असर?

मिशन 2022 को लेकर सभी पार्टियां अपनी-अपनी तैयारियों में जुटी है। लखनऊ में अखिलेश यादव और जयंत चौधरी के बीच मुलाकात हुई है। सूत्रों के अनुसार दोनों में सीट बंटवारे को लेकर चर्चा हुई है। दोनों पार्टियां उत्तर प्रदेश में मिलकर चुनाव लड़ेंगी इसमें कोई शकोशुबा बाकी नहीं है। हालांकि गठबंधन का औपचारिक ऐलान होना बाकी है। लेकिन दोनों के हाथों में हाथ डाले तस्वीर ये बताने के लिए काफी है  कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल के बीच जल्द ही गठबंधन का ऐलान हो सकता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रालोद नेता जयंत चौधरी ने डिप्टी सीएम पद की शर्त रखी है। सूत्रों का कहना है कि सपा के करीब आधा दर्जन नेता आरएलडी के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। गौरतलब है कि आरएलडी और सपा के बीच सीटों को लेकर खींचतान चल रही थी। दोनों दलों के बीच दो दौर की बातचीत के बाद भी सीट बंटवारे को लेकर सहमति नहीं बन सकी थी।

यूपी की नई जोड़ी 

सपा और रालोद के बीच बात बन गई इसकी बानगी अखिलेश के ट्विट से भी नजर आती है। अखिलेश ने लिखा कि जयंत चौधरी से मुलाकात, बदलाव की ओर। गौरतलब है कि 2017 के चुनाव से लेकर आगामी 2022 के चुनाव तक अखिलेश तीसरी बार राजनीतिक जोड़ी बनाने जा रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस संग गठबंधन और यूपी के अच्छे लड़के तो सभी को याद होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में पुरानी कड़वाहट को भुला मायावती के साथ जोड़ी बनाई। अब अखिलेश यादव तीसरी बार नई जोड़ी जयंत चौधरी के साथ बनाने जा रहे हैं।

गठबंधन से क्या होगा असर?

 पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी का दबदबा।

गठबंधन से दोनों को फायदा हो सकता है।

बीजेपी को नुकसान हो सकता है।

पश्चिमी यूपी में जाट-यादव का नया समीकरण बनेगा।

 मुस्लिम वोट के बंटवारे में सेंध नहीं लग पाएगी।

छू पाएंगे जादुई आंकड़ा?

2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति पूरी तरह से बदल गई। चाहे आप 2014 के लोकसभा चुनाव को देखें, 2017 के विधानसभा चुनाव को  या 2019 के आम चुनाव को जब सपा-बसपा और रालोद की तिकड़ी थी। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वैसे भी सपा का कोई बहुत बड़ा आधार नहीं है। एक बात बस ये देखने वाली होगी की इन दोनों के साथ होने से क्या मुस्लिम वोटों का बंटवारा रूकेगा। इसके साथ ही सबसे बड़ा सवाल कि क्या इस बार के चुनाव में मुसलमान और जाट एक साथ आ सकते हैं। अभी तक तो ऐसा देखने को नहीं मिला है। अगर लोकसभा चुनाव में ऐसा हुआ होता तो मुजफ्फरनगर से अजीत सिंह को हार नहीं नसीब होती। इसके अलावा आम तौर पर देखें तो पश्चिम यूपी में किसान को लेकर जो चर्चा और हो-हल्ला मचा है। जब वो वोट डालने जाएगा तो वो जाट, लोध, शाक्य, गुर्जर, सैनी जातियों में बंट जाता है। 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here