यहां राम कहां से आ गए ?


25 अक्टूबर: मंगलवार, 24 अक्टूबर को भारत के नगर-नगर, गाँव-गाँव में दशहरा पर्व मनाया गया। श्रीराम द्वारा लंका विजय पर इसे विजयदशमी पर्व भी कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली के द्वारिका में रावण के पुतला दहन मेले में कहा कि हमें जातिवाद और क्षेत्रवाद जैसी बुराइयों को खत्म कर देना चाहिये। विजयदशमी पर नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मुख्यालय पर सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि यह पर्व हमे मातृभूमि पर गर्व करने और पूर्वजों का सम्मान करने की प्रेरणा देता है। विजयदशमी के मौके पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अरुणाचल के तवांग में पहुंचे और 1962 युद्ध के शहीद स्मारक पर जाकर शहीद जवानों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने के साथ-साथ सीमा की रक्षा में जवानों से भेंट कर उनका उत्साहवर्द्धन किया।

राम की स्मृति में करोड़ों भारतीय विजयदशमी को अति हर्ष-उल्लास से मनाते हैं यानी राम भारत के कण-कण में व्याप्त हैं किन्तु वोटों के भूखे नेता राम के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगाते हैं, राम की जय के नारे से बिंदकते हैं, अपने चिरकुट नेताओं के माध्यम से राम की गौरवगाथाओं के विरुद्ध विष वमन कराते हैं। यहाँ नहीं, वे कहते हैं कि यहां राम का का क्या मतलब |

जिन डॉ. राममनोहर लोहिया ने चित्रकूट में रामायण मेला आरंभ कराया. जिन्हें मुलायम सिंह अपना राजनीतिक गुरु मानते थे और आज भी समाजवाद का ढोल पीट कर, राम का गुणगान करने वाले डॉक्टर लोहिया के नाम पर वोटों की भीख मांगने वाले कहते हैं- यहाँ राम कैसे आ गए?

समाचार है कि प्रयागराज में गंगास्नान करने पहुंचे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने जब पुजारी सोमनाथ भट्ट ने जय श्रीराम का नारा लगाया तो उन्होंने कहा- ‘यहा राम कहाँ से आ गए?’

आखिलेश के कथन के जबाब मे वहां उपास्थित भीड़ ने कहा- जगत के हर कोने में राम ही राम है।जैसा कि चिरकुट नेताओं की आदत है, वे तुरन्त यह कह कर पल्ला झाड़ने की कोशिश करते हैं कि मीडिया ने उनके कथन को तोड़-मरोड़ के पेश किया है। हो सकता है, अखिलेश भी ऐसा ही करें किन्तु वोटों की खातिर कट्टरपंथियों को खुश करने का ओछा प्रयास अति निन्दनीय है। राम क्या है, यह अल्लामा इकबाल बहुत पहले कह गये थे:
है राम के वजूद से हिन्दोस्तां को नाज़,
अहल-ए-नज़र समझते हैं उसको इमाम-ए-हिन्द !

गोविन्द वर्मा

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