एमएसपी के लिए लंबी लड़ाई लड़ेंगे: राकेश

पीएम नरेंद्र मोदी की घोषणा के अनुरूप सोमवार को तीनों कृषि कानून वापस लेने पर संसद की मुहर लग गई। लोकसभा में केवल पांच मिनट के अंदर कृषि कानूनों को समाप्त करने की औपचारिकता निभा दी गई। विपक्ष इस मुद्दे के बहाने सरकार को घेरने की मंशा लिए बहस कराए जाने की गुहार लगाता रह गया, लेकिन उसकी एक नहीं चली। केंद्र सरकार के कामकाज के इस तरीके पर विपक्ष ही नहीं, किसानों ने भी सवाल खड़े किए हैं। किसानों का कहना है कि आज सरकार ने केवल पांच मिनट में ये कानून खत्म कर दिए। सभी यह जानते थे कि यह काम चंद मिनटों में किया जा सकता है, लेकिन सरकार ने इसके लिए किसानों को एक साल तक बिठाए रखा। यदि सरकार एक साल पहले ही यह बात मान लेती तो इस मुद्दे पर इतना विवाद न खड़ा होता।

एमएसपी पर बात सुने सरकार
कृषि कानूनों की वापसी के बाद भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने किसानों को बधाई दी और कहा कि सरकार केवल पांच मिनट में कानून वापस कर सकती थी। हम ये बात पहले दिन से जान रहे थे, लेकिन सरकार ने इसके लिए हमें एक साल तक बिठाए रखा। उन्होंने कहा कि यदि सरकार एमएसपी पर हमारी बात नहीं मानती तो आगे भी हम इसी तरह आंदोलन आगे चलाने के लिए मजबूर होंगे।

हालांकि, राकेश ने कहा है कि एमएसपी के मुद्दे पर बातचीत होने की संभावना बनती दिखाई दे रही है। क्या न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर कमेटी गठित करने के संदर्भ में केंद्र ने कोई पहल की है, क्या किसानों के पास बातचीत का कोई बुलावा आया है? इस सवाल के जवाब में राकेश ने कहा कि हम केवल सरकार के बुलावे का ही इंतजार नहीं करेंगे, बल्कि आगे बढ़कर अपनी तरफ से भी बातचीत करने की पहल कर सकते हैं। अन्य किसान नेताओं से बातचीत के बाद इसके बारे में निर्णय ले लिया जाएगा।

न्यूनतम समर्थन मूल्य के मुद्दे पर किस तरह से बातचीत बनेगी, किसान नेता ने कहा कि एक बार टेबल पर बैठने के बाद हम अपनी बातें सामने रखेंगे और सरकार के सामने सभी मुद्दों पर अपनी राय से अवगत कराएंगे। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि मृत किसानों के मुआवजे और लखीमपुर खीरी में किसानों की हत्याओं के जिम्मेदार मंत्री को हटाए बिना कोई बातचीत नहीं होगी। यदि किसानों का यही रुख बना रहा तो किसानों और सरकार के बीच गतिरोध बरकरार रह सकता है।

किसानों के साथ बातचीत में यकीन नहीं रखती सरकार
किसान नेता प्रतिभा शिंदे ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि एक पूर्ण बहुमत की सरकार लगातार जनमत की अवहेलना कर रही है। उन्होंने कहा कि जिस तरह पीएम नरेंद्र मोदी एक अध्यादेश के जरिए बिना किसी से बातचीत किए कानून लाए थे, आज उसी तरह इसे खत्म भी कर दिया गया। किसान नेता ने कहा कि यदि इस मुद्दे पर सरकार को किसानों-विपक्ष से कोई बहस, कोई बातचीत नहीं करनी थी तो इसे संसद में लाने की क्या जरूरत थी। इसे लाने की तरह अध्यादेश के जरिए प्रधानमंत्री की घोषणा के दिन ही खत्म भी किया जा सकता था। किसान नेता ने कहा कि इस पूरी कार्यवाही में केवल एक बात समझ आती है कि सरकार किसी से बातचीत करने में कोई यकीन नहीं रखती है। सरकार को अपनी इस नीति में बदलाव करना चाहिए।

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