हठधर्मी, हुल्लड़ गणतंत्र का हिस्सा नहीं


सत्ता पर मौरूसी अधिकार कायम करने वाले वंशवादी, जातिवादी और तुष्टिवाद को निरंतर पुष्ट करने वाले पेशेवर नेता देश को अंधेरगर्दी के युग में धकेलने के लिए जिस प्रकार एकजुट होकर देश के लोगों को बरगलाने में जुटे हैं उससे लोकतंत्र, सामाजिक न्याय और समतावादी समाज की संरचना के प्रयासों को तो खतरा पैदा होता दिखाई दे रहा है, देश की संप्रभुता, सुरक्षा एवं सम्मान को भी ठेस पहुंच रही है और यह सब लोकतंत्र तथा मजदूर किसान के कल्याण के नाम पर हो रहा है। अधिनायकवादी ताकते विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के स्थापित मूल्यों एवं सिद्धांतों को धता बताकर देश को अशांति एवं अराजकता के माहौल में झोंकने पर निर्लज्जता से आमादा है।

जिन राजनीतिक परिवारों ने 75 वर्षों से किसान-मजदूरों, दलितों, पिछड़ों, वंचितों को निरंतर झांसा देकर अपनी निजी हुकूमत बनाकर देश के संसाधनों को अपने हित में निचोड़ डाला और नयी रियासतें खड़ी कर लीं वे बेशर्मी के साथ गरीबों, पसमांदा तबकों के नकली हिमायती बन कर नये सुधारों और जनहित में उठाये गए कदमों का विरोध कर आम जनता को बरगलाने में लगे हैं।


गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत की छवि को ठेस पहुंचाने के लिए ये देश के शत्रुओं से भी हाथ मिलाने में गुरेज नहीं कर रहे हैं और सारी मर्यादाओं को तिलांजलि देकर संविधान की मूल भावना को कुचलने के लिए तथा जनमानस को अराजकता की ओर धकेलने के लिए प्रयत्नशील हैं। जनता को बताया जा रहा है कि हठधर्मी और हुल्लड़बाजी से हर बात मनवाई जा सकती है। यह खेल लोकतंत्र के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है अतः हर जिम्मेदार भारतीय का कर्तव्य बनता है कि वह संविधान एवं कानून की मर्यादाओं का सम्मान व रक्षा करें और इस षड्यंत्र को नाकाम करने में मदद करें। आज गणतंत्र दिवस का यही संदेश है।

गोविंद वर्मा

संपादक: देहात

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