सरकार की तरफ से एक साथ चुनाव कराने के लिए जोर देने के पीछे एक प्रमुख कारण यह बताया गया है कि बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य और सामान्य जन-जीवन बाधित होता है, लेकिन इस पर चुनाव आयोग ने कहा है कि यह चुनावों में समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से एक ‘महत्वपूर्ण साधन’ है।
विधेयक में क्या दिया गया हवाला?
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए सरकार की तरफ से लाए गए विधेयकों के अनुसार, चुनाव महंगे और समय की खपत होने समेत कई कारणों से एक साथ चुनाव कराने की अनिवार्य आवश्यकता है। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक में कहा गया है कि देश के चुनाव वाले हिस्सों में आदर्श आचार संहिता लागू होने से पूरे विकास कार्यक्रम रुक जाते हैं और सामान्य जन-जीवन में व्यवधान उत्पन्न होता है।
‘आचार संहिता के अनुप्रयोग को व्यवधान के रूप में देखना सही नहीं’
इसमें कहा गया है कि बार-बार आचार संहिता लागू होने से सेवाओं का कामकाज भी प्रभावित होता है और लंबे समय तक जनशक्ति अपने मूल कार्यों से हटकर चुनाव ड्यूटी में लग जाती है। लेकिन चुनाव प्राधिकरण का मानना है कि ‘आचार संहिता के अनुप्रयोग को व्यवधान के रूप में देखना सही नहीं होगा क्योंकि यह अभियान में शामिल सभी हितधारकों को समान अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण साधन है’।
मार्च 2023 में विधि आयोग की तरफ से एक साथ चुनाव कराने के बारे में पूछे गए प्रश्नावली का जवाब देते हुए, चुनाव आयोग ने कहा था कि आदर्श आचार संहिता की प्रयोज्यता चुनावों के चक्र और आवृत्ति पर निर्भर करती है और इसे युक्तिसंगत बनाने से, उस सीमा तक, आदर्श आचार संहिता का समय कम हो जाएगा। आयोग ने आगे कहा ‘चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के परामर्श से इसे स्वैच्छिक आचार संहिता के रूप में विकसित किया है जिसका सभी हितधारकों की तरफ से पालन किया जाना चाहिए और यह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने और विश्वसनीय परिणामों के लिए एक अभिन्न अंग है’।
विधि आयोग और केंद्रीय विधि मंत्रालय में विधि मामलों के विभाग के साथ एक साथ चुनाव कराने के कई पहलुओं पर चुनाव आयोग के रुख को एक साथ चुनाव कराने संबंधी विधेयकों की जांच कर रही संसद की संयुक्त समिति के सदस्यों को प्रदान किया गया है। चुनाव आयोग का रुख पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर उच्च स्तरीय समिति को भी बताया गया।
आदर्श आचार संहिता को सीमित रखा जाता है- आयोग
चुनाव आयोग ने कहा कि उसने खुद ही लगातार एक रणनीति विकसित की है, जिसके तहत आदर्श आचार संहिता की अवधि को घोषणा की तिथि से लेकर चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक ‘आवश्यक न्यूनतम’ तक सीमित रखा जाता है। विधि आयोग ने चुनाव आयोग से इस तर्क पर अपना विचार पूछा था कि ‘समय-समय पर होने वाले चुनावों के कारण आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण नीतिगत पक्षाघात होता है?’