जम्मू-कश्मीर सरकार के एक फ़ैसले से न सिर्फ कश्मीर घाटी में वरन राजधानी दिल्ली तक हड़कंप मचा हुआ है। दरअसल जम्मू-कश्मीर सरकार ने पासपोर्ट विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों व अन्य विभागाध्यक्षों को आदेश जारी किया है कि आतंकवादियों के समर्थन में सुरक्षाबलों पर पथराव करने वालों, अलगाववादियों के एजेंडे को आगे बढ़ाने वालों और देशद्रोहियों की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष मदद करने वालों और विदेशों में जाकर देश के विरुद्ध प्रचार करने वालों को पासपोर्ट न दिये जाएं। पासपोर्ट जारी करते एवं सरकारी नौकरी देते समय दस्तावेजों व सूचनाओं की तस्दीक कर ली जाए कि आवेदक राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में तो संलग्न नहीं रहा या है। इसका सीधा अर्थ है कि पत्थरबाजों तथा देशद्रोहियों को अब न केवल पासपोर्ट ही नहीं मिलेगा, उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी।
अतीत में कांग्रेस, पीडीपी व नेशनल कॉन्फ्रेंस द्वारा सात दशकों तक कश्मीर में आतंकवादियों, अलगाववादियों को भरपूर संरक्षण दिया गया। यहां तक कि भारत से कश्मीर को अलग करने की मुहिम चलाने वाले नेताओं की सुरक्षा, उनके होटलों के खर्च व हवाई यात्रा पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किये गए। जब भारत के सुरक्षाबल किसी आतंकी को हिरासत में लेते थे तो ये देशद्रोही, जिनमें महिलायें भी होती थीं, सैन्य बलों पर पथराव कर उन्हें छुड़ा लेते थे। महबूबा मुफ्ती के मुख्यमंत्रित्व काल में 8000 पत्थरबाजों को जेल से रिहा कर दिया गया। फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के शासनकाल में भी पत्थरबाजों और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वालों की खूब परवरिश हुई।
कश्मीर मामलों के जानकार रमीज मखदूमी ने बताया है कि घाटी में अब भी हजारों की तादाद में उपद्रवी तत्व सक्रिय हैं। कुछ भारत विरोधी वीजा लेकर दुबई व यूरोपीय देशों में जाकर देश के विरुद्ध प्रचार करते हैं और आतंकियों के लिए फंड इकट्ठा करते हैं। श्री मखदूमी ने बताया कि दुख़्तरान-ए-मिल्लत की अध्यक्षा का पुत्र मोहम्मद बिन कासिम अलगाववादी नेता शाह गिलानी का दामाद अल्ताफ़ शाह फंतौश, उसकी बेटी रूबीशाह तथा कश्मीरी उद्योगपति डॉ. मोबिन शाह आज भी भारत विरोधी मुहिम में शिद्दत के साथ अब भी सक्रिय है। पुलिस व प्रशासन के कुछ विशेष अधिकारी उनके मददगार हैं। घाटी में शांति-सुरक्षा के लिए इन सभी की राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को रोका जाना आवश्यक है किंतु निर्दोषों को परेशान न किया जाए।
राज्य सरकार के आदेश से फारूक, उमर अब्दुल्ला और सबसे अधिक महबूबा मुफ्ती बौखलाई हुई है क्योंकि पत्थरबाज़ इन्ही के पाले हुए हैं। कांग्रेस के नेता भी इन्हीं के सुर में सुर मिला रहे हैं। यह तय है कि अब पत्थरबाजों की खैर नहीं, चाहे ये जितना उछल कूद मचायें।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात