राजस्थान के कोटपूतली क्षेत्र के खेड़ा निहालपुरा गांव में शनिवार का दिन इतिहास बन गया, जब आजादी के बाद पहली बार दलित समाज के दूल्हे की बारात घोड़ी पर निकलने में सफल हुई। 35 वर्षों तक चली परंपरागत सामाजिक बंदिश को आखिरकार इस विवाह ने तोड़ दिया। यह सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि समानता, संवैधानिक अधिकार और सामाजिक बदलाव का प्रतीक बनकर उभरी।
सुरक्षा के व्यापक इंतजाम
दूल्हे कालूराम आर्य पुत्र मूलचंद आर्य ने बारात से पहले संभावित विरोध की जानकारी प्रशासन को दी थी। शिकायत मिलते ही जिला प्रशासन पूरी तरह सतर्क हो गया। डीएसपी राजेंद्र बुरड़क के नेतृत्व में सरूंड और कोटपूतली थाना पुलिस, साइबर यूनिट समेत 70 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई। तहसीलदार, नायब तहसीलदार और अन्य अधिकारी भी लगातार मौके पर मौजूद रहे, जिससे निकासी सुरक्षित और व्यवस्थित हो सकी।
शांति और सहयोग के साथ निकासी
दोपहर साढ़े तीन बजे दूल्हा पारंपरिक वेशभूषा में सजी घोड़ी पर सवार होकर गांव की गलियों से निकला। पूरे मार्ग में शांति और सहयोग का माहौल बना रहा। कहीं कोई विरोध नहीं हुआ और निकासी पूरी तरह सकुशल संपन्न हुई। जिस परंपरा को दशकों तक दबाव और डर के कारण चुनौती नहीं दी जा सकी थी, वह प्रशासन और समाज की संयुक्त इच्छाशक्ति से टूट गई।
समरसता और सामाजिक एकता का संदेश
इस ऐतिहासिक अवसर पर विभिन्न समाजों की एकजुटता देखने को मिली। प्रागपुरा के एडवोकेट देवांश सिंह शेखावत ने घोड़ी की नकेल पकड़कर भाईचारे का संदेश दिया। सेवानिवृत्त फौजी सरजीत बोपिया, सामाजिक कार्यकर्ता राजेश कुमार हाड़िया, मेघवाल विकास समिति और डॉ. भीमराव अंबेडकर विचार मंच कोटपूतली के अध्यक्ष जगदीश मेघवाल सहित कई लोगों ने भरोसा और सौहार्द कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजपूत, ओबीसी और एससी-एसटी समुदायों की संयुक्त भागीदारी ने यह साबित किया कि जब समाज एकजुट हो, तो दशकों पुरानी सामाजिक बाधाओं को भी तोड़ा जा सकता है।
अंबेडकर के समानता संदेश का जीवंत उदाहरण
खेड़ा निहालपुरा की यह घुड़चढ़ी डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा दिए गए समानता और संवैधानिक अधिकारों के संदेश का प्रत्यक्ष उदाहरण बन गई। गांव में पहली बार निकली यह बारात सामाजिक परिवर्तन और समानता की दिशा में मील का पत्थर साबित हुई।