रुड़की के 27 वर्षीय युवा वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल की जिंदगी 2018 में अचानक बदल गई थी। ब्रह्मोस एयरोस्पेस, नागपुर में मिसाइल प्रोजेक्ट पर काम करते हुए और डीआरडीओ से यंग साइंटिस्ट अवॉर्ड प्राप्त करने के कुछ ही दिनों बाद, यूपी और महाराष्ट्र एटीएस ने उन्हें पाकिस्तान को तकनीकी जानकारी लीक करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।

8 अक्तूबर 2018 की वह सुबह उनकी नवविवाहित पत्नी क्षितिजा के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी। विवाह को मुश्किल से साढ़े पांच महीने हुए थे और परिवार अचानक देशद्रोह के आरोपों के बोझ तले दब गया। निशांत जेल में बंद रहे और घर पर उनकी पत्नी व मां खामोशी के बोझ में एक अघोषित कैद जैसी जिंदगी जीती रहीं।

लंबी कानूनी लड़ाई के बाद मिली राहत

निशांत की पत्नी क्षितिजा और उनकी मां ऋतु अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन वैज्ञानिक की छवि पर ऐसे आरोप लगेंगे। 2013 में निशांत ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस में वैज्ञानिक के रूप में नौकरी शुरू की थी। अक्तूबर 2018 में उन्हें दिल्ली में डीआरडीओ द्वारा सम्मानित किया गया, और ठीक उसी महीने एटीएस टीम ने सुबह करीब साढ़े चार बजे उनके नागपुर आवास पर छापा मारकर लैपटॉप व मोबाइल जब्त किए और निशांत को हिरासत में ले लिया।

परिवार के अनुसार शुरुआती महीनों में उन्हें समझ ही नहीं आया कि यह सब कैसे हुआ। करीब नौ महीने बाद नागपुर सेशन कोर्ट में चार्जशीट दाखिल हुई, और मामला वर्षों तक चलता रहा। जून 2024 में निचली अदालत ने सभी दलीलों के विपरीत आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जिससे परिवार की उम्मीदें टूटती दिखीं।

हाईकोर्ट ने बरी किया, घर लौटी खुशियां

सजा के बाद भी परिवार ने हिम्मत नहीं छोड़ी और हाईकोर्ट में अपील दायर की। अंततः 1 दिसंबर 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने निशांत को सभी आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट में यह साबित भी नहीं हुआ कि लैपटॉप से कोई संवेदनशील डेटा ट्रांसफर हुआ था। केवल ट्रेनिंग के समय के कुछ महत्वहीन दस्तावेज़ ही डिवाइस में मिले थे, जिन्हें आधार बनाकर आरोप लगाए गए थे।

निशांत की मां ऋतु अग्रवाल ने बताया कि पिछले वर्षों में उन्होंने सिर्फ उम्मीद के सहारे दिन बिताए। वहीं, क्षितिजा ने भावुक होकर बताया कि जेल में निशांत ने बेटे को वहां न लाने की हिदायत दी थी। उन्हें विश्वास था कि वे एक दिन निर्दोष साबित होकर लौटेंगे।

सवालों और शक की नजरों का बोझ

गिरफ्तारी के समय एटीएस टीम रुड़की भी पहुंची थी और यहां से एक लैपटॉप जब्त किया था। उस दौरान पड़ोसियों की शंकाओं भरी निगाहें परिवार को लगातार कचोटती रहीं। हालांकि, रिश्तेदारों ने पूरा साथ दिया और भरोसा बनाए रखा।

करीब छह वर्षों के संघर्ष के बाद अब परिवार पर से आरोपों का बोझ हट चुका है और घर में एक बार फिर सामान्य जीवन की उम्मीद जग चुकी है।