नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र से 2020 की इलेक्ट्रिक वाहन (EV) नीति पर पुनर्विचार करने और पिछले पांच वर्षों में हुए परिवर्तनों को इसमें शामिल करने का निर्देश दिया। यह कदम उस याचिका के जवाब में आया है जिसमें एक महानगर से नीति के कार्यान्वयन की मांग की गई थी।
जस्टिस सूर्यकांत और जेमल्य बागची की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरामणि से कहा कि वे पिछले पांच वर्षों में हुए परिवर्तनों पर ध्यान दें और उन्हें राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (एनईएमएमपी) 2020 में शामिल करें। यह योजना इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने और उनके व्यापक उपयोग को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाई गई है।
निर्णय जल्द होगा
अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट को बताया कि केंद्र के 13 मंत्रालय वर्तमान में नीति की व्यवहार्यता और सुधारों पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि निर्णय जल्द ही लिया जाएगा। पीठ ने कहा कि नीति में समय के साथ कई बदलाव हुए हैं और इसे पहले एक महानगर में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू किया जा सकता है।
नवीनीकृत नीति में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने के लिए प्रोत्साहन, सरकारी संस्थानों द्वारा ईवी का इस्तेमाल, और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता जैसे पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी। वेंकटरामणि ने बताया कि अंतर-मंत्रालय समूह इन पहलुओं पर विचार कर रहा है।
जनहित याचिका से जुड़ी पृष्ठभूमि
यह मामला 2019 की एक जनहित याचिका से जुड़ा है, जिसे सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (CPIEL) के अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दायर किया था। याचिका में सरकार से 2020 की इलेक्ट्रिक वाहन नीति को लागू करने और चार्जिंग स्टेशनों जैसी आवश्यक अवसंरचना स्थापित करने का निर्देश देने की मांग की गई थी।
इलेक्ट्रिक वाहनों का बढ़ता उपयोग
वर्तमान में लोग इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपना रहे हैं और उच्च श्रेणी के मॉडल भी बाजार में उपलब्ध हैं। जनहित याचिका में केंद्र से नागरिकों के स्वच्छ पर्यावरण, स्वास्थ्य और सांस लेने के अधिकार की रक्षा के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों को तेजी से अपनाने का निर्देश देने की अपील की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इस मामले में केंद्र से नीति में सुधार करने और इसे प्रभावी रूप से लागू करने का रोडमैप प्रस्तुत करने को कहा है।