सुप्रीम कोर्ट ने एक महिला को उसकी 14 साल से चली आ रही कानूनी लड़ाई में बड़ी राहत दी है। कोर्ट ने पत्नी की ओर से दायर सभी लंबित आपराधिक और दीवानी मामलों को खारिज करते हुए पति को स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 1 करोड़ रुपए देने का आदेश दिया।

इस दंपति की शादी 5 अक्टूबर 2009 को हुई थी। पत्नी ने आरोप लगाया कि ससुराल में उसे मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी, जिसके चलते 15 अप्रैल 2010 को उसने ससुराल छोड़ दिया। इसके बाद वह अपने माता-पिता के घर रहने लगी और 28 दिसंबर 2019 को अपने बेटे को जन्म दिया। इसके बावजूद दोनों में समझौता नहीं हो सका।

14 साल में लंबित याचिकाओं का दौर
साल 2013 में पत्नी ने CrPC की धारा 125 के तहत अपने और बच्चे के भरण-पोषण के लिए मुआवजे की मांग की। 2019 में उसने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत मामला दर्ज कराया।

निचली अदालत ने 16 जनवरी 2019 को आदेश दिया कि पति को पत्नी के भरण-पोषण के लिए 10,000 रुपये मासिक, बच्चे के भरण-पोषण और शिक्षा के लिए 10,000 रुपये मासिक (5,000 + 5,000) तथा किराया, पानी और बिजली के लिए 5,000 रुपये देने होंगे। साथ ही, नाबालिग बच्चे की कस्टडी पत्नी को दी गई और पति को मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक पीड़ा के लिए 4 लाख रुपये का मुआवजा भी देने का निर्देश हुआ।

हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को आंशिक रूप से बदला
इसके बाद दंपति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को अधिकांशतः बरकरार रखा, केवल 4 लाख रुपये के मुआवजे को रद्द किया। पत्नी ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश
29 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि पति को पत्नी को स्थायी भत्ते के रूप में 1 करोड़ रुपये देने होंगे। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह राशि पक्षकारों के बीच सभी दावों का पूर्ण और अंतिम निपटारा मानी जाएगी, जिसमें नाबालिग बच्चे के दावे भी शामिल हैं। राशि प्राप्त होने के बाद कोई भी पक्ष भविष्य में किसी अन्य दावे के लिए कानूनी रास्ता नहीं अपनाएगा।