पुणे के मुंधवा इलाके में सरकारी जमीन की कथित अवैध बिक्री ने बड़ा राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। लगभग 40 एकड़ क्षेत्रफल वाली इस जमीन की कीमत करीब 1800 करोड़ रुपये बताई जा रही है, लेकिन आरोप है कि इसे पार्थ पवार की कंपनी Amadea Enterprises को मात्र 300 करोड़ रुपये में बेच दिया गया और 21 करोड़ रुपये की स्टांप ड्यूटी भी माफ कर दी गई।

इस मामले को लेकर विपक्ष ने उपमुख्यमंत्री अजित पवार और उनके बेटे पार्थ पवार पर गंभीर आरोप लगाए हैं। हालांकि, FIR में पार्थ पवार का नाम शामिल नहीं है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने स्पष्ट किया है कि जांच पूरी पारदर्शिता से होगी और दोषियों पर कार्रवाई की जाएगी।

FIR में पार्थ पवार के बिजनेस पार्टनर दिग्विजय पाटिल का नाम है, जिनके पास Amadea Enterprises LLP में 1% हिस्सेदारी है, जबकि पार्थ के पास 99% हिस्सेदारी है। दिग्विजय पाटिल के खिलाफ दो FIR दर्ज की गई हैं—एक अवैध सौदे में साठगांठ और दूसरी स्टांप ड्यूटी चोरी के लिए।

इसके अलावा, शीतल तेजवानी, जो 272 जमीन मालिकों के पावर ऑफ अटॉर्नी धारक थे, और दो निलंबित सरकारी अधिकारी—उप-पंजीयक रविंद्र तारू और तहसीलदार सूर्यकांत येवले—के खिलाफ भी मामला दर्ज है। आरोप है कि इन अधिकारियों ने नियमों के खिलाफ दस्तावेज पंजीकृत किए और स्टांप ड्यूटी माफ कर दी।

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर में कहा, “FIR केवल उन लोगों पर होती है जिन्होंने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए या प्रक्रिया में सीधे शामिल थे। अगर जांच में और लिंक सामने आते हैं, तो उन पर भी कार्रवाई होगी।”

अजित पवार ने भी स्पष्ट किया कि उनके बेटे का नाम FIR में नहीं है क्योंकि उन्होंने कोई दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर नहीं किए थे और उन्हें सौदे की जानकारी नहीं थी। उन्होंने कहा कि जमीन का सौदा रद्द कर दिया गया है।

यह जमीन महार वतन श्रेणी की थी, जिसे पहले महार समुदाय को गांव में वंशानुगत सेवाओं के बदले दिया जाता था। आजादी के बाद इसे सरकारी संपत्ति माना गया और इसे बिना अनुमति बेचना अवैध है।

मुंधवा की यह जमीन 272 छोटे भूखंडों में बंटी थी। पावर ऑफ अटॉर्नी धारकों ने इसे Paramount Infrastructures के माध्यम से बेचने का प्रयास किया और IT पार्क के निर्माण की अनुमति मांगी। आरोप है कि इस प्रक्रिया में नियमों के खिलाफ स्टांप ड्यूटी में छूट भी दी गई।

यह मामला तब उजागर हुआ जब पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता दीनकर कोटकर ने 5 जून 2025 को पंजिकरण विभाग को शिकायत भेजी। जांच के दौरान पाया गया कि जमीन सरकारी होने के बावजूद दस्तावेजों में हेरफेर कर सौदा पंजीकृत कर दिया गया। इसके बाद 6 नवंबर को FIR दर्ज की गई।