राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अरावली क्षेत्र में खनन को लेकर प्रदेश की भाजपा सरकार पर तीखा हमला किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि एक ओर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा अरावली संरक्षण की बातें कर रहे हैं, जबकि दूसरी ओर उनकी सरकार सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों की अनदेखी करते हुए नए खनन पट्टों की प्रक्रिया आगे बढ़ा रही है।

नीलामी पर उठे सवाल
अशोक गहलोत ने दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव स्वयं यह स्पष्ट कर चुके हैं कि ‘मैनेजमेंट प्लान फॉर सस्टेनेबल माइनिंग’ (एमपीएसएम) तैयार होने तक अरावली क्षेत्र की किसी भी पहाड़ी पर, उसकी ऊंचाई चाहे जितनी हो, नया खनन पट्टा नहीं दिया जाएगा। इसके बावजूद राज्य के खनन विभाग ने 20 नवंबर 2025 को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए अरावली रेंज से जुड़े जयपुर, अलवर, झुंझुनूं, राजसमंद, उदयपुर, अजमेर, सीकर, पाली और ब्यावर सहित नौ जिलों में 50 खनन पट्टों की नीलामी प्रक्रिया जारी रखी।

तकनीकी तर्कों पर सवाल

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार हाईकोर्ट में यह दलील दे रही है कि संबंधित पहाड़ियां 100 मीटर से कम ऊंचाई की हैं और इसलिए अरावली के दायरे में नहीं आतीं। जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश साफ है कि एमपीएसएम का प्रावधान सभी पहाड़ियों पर लागू होगा। 30 नवंबर को आदेश जारी कर इन पट्टों को अरावली से बाहर बताना पर्यावरण के साथ खिलवाड़ और इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला के अस्तित्व पर सीधा खतरा है।

मुख्यमंत्री पर सीधा निशाना
अशोक गहलोत ने मुख्यमंत्री पर दोहरे रवैये का आरोप लगाते हुए कहा कि जहां एक ओर पर्यावरण संरक्षण के भाषण दिए जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री के गृह जिले से सटे डीग क्षेत्र में साधु-संत अवैध खनन के विरोध में धरने पर बैठे हैं। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव न तो केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) को कमजोर किए जाने पर खुलकर बोल रहे हैं और न ही सरिस्का के संरक्षित क्षेत्र में किए गए बदलावों पर स्थिति स्पष्ट कर पा रहे हैं।

गहलोत ने कहा कि चूंकि मुख्यमंत्री स्वयं खनन विभाग का भी प्रभार संभाल रहे हैं, इसलिए उन्हें प्रदेश की जनता को यह बताना चाहिए कि क्या वे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों और अपने ही केंद्रीय मंत्री के बयानों के विपरीत जाकर अरावली क्षेत्र में बिना एमपीएसएम के नए खनन पट्टे जारी करने का इरादा रखते हैं।