लखनऊ: सहारा इंडिया कॉमर्शियल कॉर्पोरेशन लिमिटेड द्वारा सहारा शहर पर लखनऊ नगर निगम की कार्रवाई को चुनौती देते हुए दायर याचिका पर बुधवार को लखनऊ हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। अदालत ने मामले पर गंभीर विचार करने की आवश्यकता जताई और राज्य सरकार तथा नगर निगम से 30 अक्तूबर तक लिखित जवाब तलब किया।

सहारा ने याचिका में नगर निगम द्वारा सहारा शहर की लीज पर दी गई जमीनों और उन पर निर्मित संपत्तियों में हस्तक्षेप को रद्द करने का अनुरोध किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने सहारा शहर में मौजूद मवेशियों को कान्हा उपवन ले जाकर समुचित देखभाल सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान सहारा की दलीलों पर गौर किया। याचिका में नगर निगम द्वारा 8 और 11 सितंबर 2025 को जारी किए गए आदेशों को रद्द करने का आग्रह किया गया है। सहारा ने यह भी कहा कि इस मामले में पहले से ही सिविल कोर्ट में स्थगन आदेश लागू है और आर्बिट्रेशन कार्यवाही में लीज एग्रीमेंट बढ़ाने के निर्देश दिए जा चुके थे, लेकिन नगर निगम ने इसमें कोई कार्रवाई नहीं की।

सहारा का आरोप है कि कार्रवाई करने से पहले उसे सुनवाई का उचित अवसर नहीं दिया गया। कंपनी ने कोर्ट में कहा कि गोमतीनगर में 22 अक्टूबर 1994 और 23 जून 1995 को उन्हें पट्टे पर दी गई जमीनों पर 2480 करोड़ रुपये की लागत से 87 आवासीय और वाणिज्यिक संपत्तियां विकसित की गई हैं।

वहीं नगर निगम ने तर्क दिया कि कार्रवाई 1994 की लीज शर्तों के उल्लंघन के कारण की गई और 2020 तथा 2025 में नोटिस देने के बाद निर्धारित प्रक्रिया के तहत सुनवाई कर सीलिंग की कार्रवाई की गई।