बैंकिंग सेक्टर के लिए सकारात्मक रुझान सामने आए हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में धीमी पड़ी कर्ज वितरण की गति एक बार फिर तेज़ होने के संकेत दे रही है। रिपोर्ट का कहना है कि कंपनियों के रोजमर्रा के संचालन और वर्किंग कैपिटल की जरूरत बढ़ने के साथ लोन की मांग दोबारा उभर रही है।
आईपीओ की तेज़ी से घटी थी कर्ज की मांग
एसबीआई का विश्लेषण बताता है कि हाल में कर्ज की रफ्तार सुस्त होने की एक प्रमुख वजह शेयर बाजार में जारी आईपीओ की बाढ़ रही। कई कंपनियों ने पूंजी बाजार से कम लागत पर बड़ी मात्रा में धन जुटा लिया, जिसके बाद उन्होंने बैंक कर्ज लेने में रुचि कम दिखाई। कई संस्थानों ने आईपीओ के जरिए मिले फंड से अपने नियमित काम पूरे किए और पुराने लोन भी चुका दिए, जिससे बैंकिंग सेक्टर में क्रेडिट ग्रोथ पर असर पड़ा।
बैंक ने अपने डेटा अध्ययन में पाया कि कर्ज वितरण और आईपीओ फंडिंग का ट्रेंड अक्सर विपरीत दिशा में चलता है। जिन क्षेत्रों—जैसे वित्तीय सेवाएं, ऑटोमोबाइल, फार्मा, टेलीकॉम, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और इन्फ्रास्ट्रक्चर—ने बाजार से अधिक धन जुटाया, उन्हीं सेक्टर्स ने बैंक लोन पर अपेक्षाकृत कम निर्भरता दिखाई।
वर्किंग कैपिटल की बढ़ती ज़रूरत से लौट रही डिमांड
एसबीआई का कहना है कि अब हालात बदलने लगे हैं और कंपनियां अपने परिचालन खर्चों के लिए बैंकों की ओर रुख कर रही हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि क्रेडिट लिमिट का उपयोग बढ़ना इस बात का संकेत है कि कारोबारी गतिविधियों में तेजी आ रही है और अर्थव्यवस्था मजबूत रफ्तार से आगे बढ़ रही है। उत्पादन बढ़ने के साथ कच्चे माल की खरीद, सप्लाई चेन और अन्य परिचालन जरूरतों के लिए तत्काल नकदी की आवश्यकता फिर बढ़ रही है, जिससे कर्ज की मांग में वृद्धि हो रही है।
लिक्विडिटी बनाए रखना आरबीआई की मुख्य जिम्मेदारी
इस परिदृश्य में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की भूमिका अहम मानी जा रही है। SBI ने सुझाव दिया है कि केंद्रीय बैंक को वित्तीय प्रणाली में पर्याप्त नकदी उपलब्ध रखना होगी ताकि बैंकों की उधार देने की क्षमता प्रभावित न हो। पर्याप्त लिक्विडिटी बनी रहने से ब्याज दरों पर दबाव कम रहेगा और कर्ज वितरण सुगम होगा।