मुंबई। बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता और हास्य कलाकार असरानी का सोमवार दोपहर निधन हो गया। ‘शोले’ फिल्म में जेलर का यादगार किरदार निभाकर घर-घर में पहचान बनाने वाले असरानी 84 वर्ष के थे। बीते चार दिनों से वे मुंबई के आरोग्यानिधि अस्पताल में भर्ती थे, जहां दोपहर करीब तीन बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। हालांकि उनकी मृत्यु का सटीक कारण सामने नहीं आया है। असरानी के मैनेजर ने पुष्टि की कि सोमवार शाम को ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया।

दिलचस्प बात यह है कि निधन से कुछ घंटे पहले ही असरानी ने सोशल मीडिया पर अपने प्रशंसकों को दीपावली की शुभकामनाएं दी थीं। कुछ ही समय बाद उनके निधन की खबर आई, जिससे फिल्म जगत में शोक की लहर दौड़ गई।

शांतिपूर्वक विदाई की इच्छा
असरानी का अंतिम संस्कार सांताक्रूज पश्चिम स्थित शास्त्री नगर श्मशान घाट में संपन्न हुआ। वहां किसी भी फिल्मी हस्ती की उपस्थिति नहीं थी। बताया गया कि असरानी ने अपनी पत्नी मंजू से पहले ही कह दिया था कि वे अपने अंतिम क्षणों में कोई भीड़ या हलचल नहीं चाहते। उनकी इच्छा थी कि विदाई शांतिपूर्वक हो। इसलिए परिवार ने अंतिम संस्कार की सूचना सार्वजनिक नहीं की।

फिल्मी सफर की शुरुआत
असरानी ने 1960 से 1962 तक साहित्य कलाभाई ठक्कर से अभिनय की शिक्षा ली और 1963 में काम की तलाश में मुंबई पहुंचे। 1964 में उन्होंने पुणे फिल्म संस्थान में दाखिला लेकर अभिनय की औपचारिक ट्रेनिंग ली। असरानी को पहला बड़ा मौका फिल्म हरे कांच की चूड़ियां (1967) में मिला, जिसमें उन्होंने अभिनेता बिश्वजीत के दोस्त का किरदार निभाया।

राजेश खन्ना के साथ गहरी दोस्ती
असरानी और सुपरस्टार राजेश खन्ना की दोस्ती फिल्म नमक हराम के दौरान हुई। इसके बाद दोनों ने करीब 25 फिल्मों में साथ काम किया। राजेश खन्ना अकसर निर्माता-निर्देशकों से कहते, “फिल्म में असरानी को जरूर शामिल करें।”

हास्य और अभिनय दोनों में माहिर
1970 के दशक में असरानी ने कॉमेडी भूमिकाओं से अपनी खास पहचान बनाई। उनकी प्रमुख फिल्मों में शोले, चुपके चुपके, छोटी सी बात, रफू चक्कर, फकीरा, हीरा लाल पन्नालाल और पति पत्नी और वो शामिल हैं। वहीं, खून पसीना में उन्होंने गंभीर भूमिका निभाकर अपनी बहुमुखी प्रतिभा दिखाई।

नई पीढ़ी के लिए भी रहे प्रासंगिक
2000 के दशक में असरानी ने हेरा फेरी, गरम मसाला, भागम भाग, मालामाल वीकली, चुप चुप के और दीवाने हुए पागल जैसी फिल्मों में हास्य का नया रंग भरा। अपनी सहज अदायगी और समयानुकूल अभिनय से असरानी ने पांच दशकों तक दर्शकों के दिलों में जगह बनाए रखी।

भारतीय सिनेमा में असरानी का योगदान सदैव याद रखा जाएगा- वे सिर्फ एक कॉमेडियन नहीं, बल्कि हर दौर में हंसी और संवेदना के प्रतीक बनकर उभरे।