नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने डीपफेक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से तैयार नकली सामग्री से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए आईटी नियमों में बदलाव का मसौदा पेश किया है। इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के द्वारा तैयार किए गए इस प्रस्ताव में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अब एआई-जनित या सिंथेटिक कंटेंट को स्पष्ट रूप से चिन्हित करने का निर्देश दिया गया है, ताकि यूजर्स असली और नकली सामग्री में अंतर कर सकें।

नए नियमों के मुख्य प्रावधान
प्रस्तावित नियमों के तहत फेसबुक, इंस्टाग्राम और एक्स (पूर्व में ट्विटर) जैसे बड़े सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को यह सुनिश्चित करना होगा कि यदि कोई वीडियो, फोटो या ऑडियो एआई या कंप्यूटर-जनित है, तो उस पर स्पष्ट लेबल या मार्कर लगाया जाए। विजुअल सामग्री में यह लेबल कम से कम 10% हिस्से में दिखना चाहिए, जबकि ऑडियो में शुरुआती 10% अवधि तक सुनाई देना जरूरी होगा।

इसके अलावा, प्लेटफॉर्म्स को यह भी जांच करनी होगी कि यूजर द्वारा अपलोड की गई सामग्री असली है या सिंथेटिक। इसके लिए तकनीकी उपाय अपनाने और यूजर से ‘डिक्लेरेशन’ लेना अनिवार्य होगा।

डीपफेक तकनीक से बढ़ता खतरा
मंत्रालय ने बताया कि हाल के महीनों में डीपफेक वीडियो और ऑडियो तेजी से वायरल हुए हैं, जिनसे गलत सूचना फैलाने, राजनीतिक छवि को प्रभावित करने, धोखाधड़ी करने और लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के मामले सामने आए हैं। वैश्विक स्तर पर भी डीपफेक तकनीक को लेकर चिंता जताई जा रही है, क्योंकि यह वास्तविक लगने वाले झूठे वीडियो और तस्वीरें बनाकर समाज में भ्रम फैलाने में सक्षम है।

जनता से मांगे सुझाव
आईटी मंत्रालय ने इस मसौदे पर जनता और विशेषज्ञों से 6 नवंबर 2025 तक सुझाव और टिप्पणियां मांगी हैं। सरकार का कहना है कि इन बदलावों का उद्देश्य यूजर्स को सतर्क करना, फर्जी सामग्री पर नियंत्रण और एआई इनोवेशन के लिए सुरक्षित वातावरण तैयार करना है।