गुजरात हाईकोर्ट ने सफाईकर्मियों की मौत के मामलों में राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि केवल ठेकेदारों पर कार्रवाई कर मामला खत्म नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि असली जिम्मेदारी उन अधिकारियों की भी है, जिनके क्षेत्रों में हादसे हो रहे हैं। पीठ ने स्पष्ट किया कि जब तक अफसरों पर जवाबदेही तय नहीं होगी, सिस्टम में सुधार नहीं आएगा।

मामले का संदर्भ:
यह टिप्पणी 2016 में दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई के दौरान हुई। याचिका में उन मौतों का विवरण है, जो सफाईकर्मियों की सीवर, सेप्टिक टैंक और नालियों की मैनुअल सफाई (मैनुअल स्कैवेंजिंग) के दौरान हुईं। यह प्रक्रिया कानूनन पूरी तरह प्रतिबंधित है।

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी:
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति डी.एन. रे की खंडपीठ ने कहा कि अगर कोई हादसा होता है, तो नगरपालिका के मुख्य अधिकारी की जिम्मेदारी बनती है। पीठ ने यह भी कहा कि केवल ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर देने से समस्या हल नहीं होती, क्योंकि नया ठेकेदार भी वही गलतियां दोहराता है। असली जिम्मेदारी नगर निकाय की होती है। अदालत ने कहा कि ऐसी घटनाओं में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जानी चाहिए और अफसरों को जवाबदेह ठहराना आवश्यक है।

सरकार का जवाब:
एडवोकेट जनरल कमल त्रिवेदी ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने इस दिशा में कदम उठाए हैं। सीवर सफाई के लिए मशीनें खरीदी जा रही हैं ताकि मजदूर गड्ढों में उतरने से बचें। अब तक 16 जेटिंग-कम-सक्शन मशीनें और 24 डीसिल्टिंग मशीनें 16 शहरी निकायों को दी जा चुकी हैं, और 209 और मशीनें मार्च 2026 तक उपलब्ध कराई जाएंगी। सरकार का लक्ष्य है कि मैनहोल की जगह मशीन-होल का इस्तेमाल हो।

हाथों से सफाई खत्म करना क्यों जरूरी:
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि केवल हर नगरपालिका के पास आधुनिक सफाई मशीनें होने पर ही मजदूरों की जान जोखिम में नहीं पड़ेगी।

कानून का प्रावधान:
2013 का प्रोहिबिशन ऑफ एंप्लॉयमेंट ऐज मैनुअल स्कैवेंजर्स एंड देयर रिहैबिलिटेशन एक्ट (PEMSR Act) हाथों से कचरे की सफाई को पूरी तरह प्रतिबंधित करता है। इसके तहत किसी भी व्यक्ति से मानव मल-मूत्र की मैनुअल सफाई, उठाने या निपटान का काम नहीं कराया जा सकता।