भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आने वाले महीनों में अपने प्रक्षेपण कार्यक्रम का विस्तार करने जा रहा है। संगठन ने चालू वित्तीय वर्ष के अंत तक सात अतिरिक्त लॉन्च करने का लक्ष्य तय किया है। इनमें एक वाणिज्यिक संचार उपग्रह, साथ ही कई पीएसएलवी और जीएसएलवी मिशन शामिल होंगे। यह जानकारी इसरो प्रमुख वी. नारायणन ने एक विशेष साक्षात्कार में दी। उन्होंने बताया कि विज्ञान, तकनीक और औद्योगिक क्षमता बढ़ाने की दिशा में इसरो तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है, और 2027 में देश का पहला मानव अंतरिक्ष यान भेजने की तैयारी भी अंतिम चरणों में है।
इसरो चेयरमैन ने जानकारी दी कि भारत में निर्मित पहले पीएसएलवी के प्रक्षेपण की तैयारी भी लगभग पूरी हो चुकी है, जिसे अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार ने चंद्रयान-4 मिशन को हरी झंडी दे दी है। यह अब तक का सबसे चुनौतीपूर्ण चंद्र अभियान होगा, जिसे 2028 में लॉन्च करने की योजना है। इस मिशन के तहत चंद्रमा की सतह से मिट्टी और चट्टानों के नमूने पृथ्वी पर लाने का लक्ष्य है—एक उपलब्धि जो इस समय केवल अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के पास है।
नारायणन ने आगे बताया कि इसरो का जापान की अंतरिक्ष एजेंसी जाक्सा के साथ मिलकर किया जा रहा लूपेक्स मिशन भी प्रमुख परियोजनाओं में शामिल है। इसका उद्देश्य चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में जल-बर्फ की विस्तृत जांच करना है। बढ़ती मिशन आवश्यकताओं को देखते हुए इसरो अगले तीन वर्षों में अपने अंतरिक्ष यान निर्माण क्षमता को तीन गुना करने की दिशा में काम कर रहा है।
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की योजना पर बात करते हुए नारायणन ने बताया कि इसका काम औपचारिक रूप से शुरू हो चुका है। प्रस्तावित स्टेशन का पहला मॉड्यूल वर्ष 2028 तक कक्षा में भेजने का लक्ष्य है, जबकि पूरी संरचना 2035 तक तैयार हो सकती है। सभी मॉड्यूल कक्षा में स्थापित होने के बाद भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों के समूह में शामिल हो जाएगा, जो अपना स्वयं का स्पेस स्टेशन संचालित करते हैं। वर्तमान में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन अपने अंतिम चरण में है, जबकि चीन का तियांगोंग स्टेशन पूरी क्षमता के साथ कार्यरत है।
इसरो प्रमुख ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैज्ञानिकों को 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर पहुंचाने और सुरक्षित वापस लाने का रोडमैप तैयार करने का निर्देश दिया है।
वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था पर बात करते हुए नारायणन ने कहा कि इस समय भारत की हिस्सेदारी लगभग 2 प्रतिशत है। इसे बढ़ाकर 2030 तक 8 प्रतिशत करने का लक्ष्य तय किया गया है। उन्होंने बताया कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था इस समय लगभग 8.2 अरब डॉलर की है और 2033 तक इसके 44 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। वहीं वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2035 तक 1.8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।