देश में बढ़ते यौन उत्पीड़न के मामलों के बीच केरल हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कोई विवाहित महिला यह दावा नहीं कर सकती कि उससे विवाह का झूठा वादा कर शारीरिक संबंध बनाए गए।
जस्टिस बेचू कुरियन थॉमस की पीठ ने एक जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में सहमति, परिस्थितियाँ और दोनों पक्षों की वैवाहिक स्थिति को ध्यान में रखकर ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचना उचित होगा। खासकर तब, जब महिला पहले से विवाहित हो और फिर भी किसी अन्य पुरुष से शारीरिक संबंध बनाए।
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि जब दोनों पक्ष एक-दूसरे की वैवाहिक स्थिति से अवगत हों, तब यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि संबंध विवाह के झूठे वादे पर बने। ऐसे मामलों में यह आकलन करना आवश्यक है कि संबंध सहमति से थे या किसी छल या दबाव के कारण बने।
याचिका किस मामले से जुड़ी थी?
इस टिप्पणी के साथ अदालत ने उस व्यक्ति को जमानत दे दी, जिस पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 69 (विवाह का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाना) और धारा 84 (किसी विवाहित महिला को आपराधिक मंशा से बहलाकर साथ ले जाना) के तहत आरोप थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी ने महिला से शादी का झूठा वादा कर संबंध बनाए, उसकी तस्वीरें और वीडियो वायरल करने की धमकी दी और 2.5 लाख रुपये भी लिए।
आरोपी का पक्ष
आरोपी के वकील ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि यह मामला झूठा है और शिकायत महिला द्वारा आर्थिक दबाव बनाने के उद्देश्य से किया गया है।
कोर्ट की दृष्टि में अहम पहलू
अदालत ने यह भी माना कि महिला पहले से विवाहित थी, इसलिए ऐसे मामले में धारा 69 के अंतर्गत अपराध का बनना संदिग्ध प्रतीत होता है। साथ ही, धारा 84 के तहत लगाए गए आरोपों में जमानत संभव है। इन तथ्यों को देखते हुए अदालत ने आरोपी को राहत देते हुए जमानत मंजूर की।
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