हिंदी और भोजपुरी साहित्य को नई दिशा देने वाले वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद रामदरश मिश्र का शनिवार को 102 वर्ष की आयु में निधन हो गया। लंबे समय से बीमार चल रहे मिश्र ने दिल्ली में अंतिम सांस ली। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदी और भोजपुरी साहित्य जगत के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है।
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने एक्स (X) हैंडल पर लिखा, “प्रख्यात साहित्यकार और शिक्षाविद रामदरश मिश्र जी के निधन से मुझे अत्यंत दुख हुआ है। उन्होंने अपने रचनात्मक कार्यों से हिंदी और भोजपुरी साहित्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्हें सदैव उनके योगदान के लिए याद किया जाएगा। इस कठिन घड़ी में उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं।”
गोरखपुर से आरंभ हुआ साहित्यिक सफर
रामदरश मिश्र का जन्म 15 अगस्त 1924 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के डुमरी गांव में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव के सरकारी विद्यालय से प्राप्त की। इसके बाद राष्ट्रभाषा विद्यालय से विशारद और साहित्यरत्न की उपाधियां हासिल कीं। उन्होंने उच्च शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से प्राप्त की, जहां से उन्होंने हिंदी विषय में स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।
शिक्षक से लेखक तक का सफर
डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने गुजरात के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ विश्वविद्यालय, बड़ौदा में अध्यापन कार्य आरंभ किया। कुछ समय पश्चात वे दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े और 1990 में प्रोफेसर पद से सेवानिवृत्त हुए।
150 से अधिक पुस्तकें और पद्मश्री सम्मान
रामदरश मिश्र हिंदी साहित्य की दुनिया में एक सशक्त नाम रहे। उन्होंने कविता, कहानी, उपन्यास, आलोचना और संस्मरण सहित विभिन्न विधाओं में 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं। साहित्य के क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
हिंदी साहित्य जगत में उनका निधन एक युग के अंत के रूप में देखा जा रहा है।