मोकामा विधानसभा (सीट संख्या 178), जो पटना से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित है, बिहार की राजनीति में एक बार फिर सुर्खियों में है। परंपरागत रूप से भूमिहार नेतृत्व और तनावपूर्ण राजनीतिक माहौल के लिए पहचान रखने वाली इस सीट पर मुकाबला हर बार बेहद रोमांचक रहा है। सड़क से लेकर सत्ता गलियारों तक, मोकामा का चुनाव अक्सर टकराव, शक्ति प्रदर्शन और कड़े संघर्ष के लिए जाना जाता रहा है।
मतगणना में एनडीए की मजबूत बढ़त
19वें राउंड की गिनती तक जदयू उम्मीदवार अनंत सिंह 73,111 वोटों के साथ आगे बने हुए हैं, जबकि राजद प्रत्याशी वीणा देवी 51,429 वोटों पर हैं। इससे पहले 13वें राउंड में भी एनडीए ने 16,246 वोटों की बढ़त बना ली थी।
मोकामा की दिलचस्प चुनावी विरासत
मोकामा का राजनीतिक इतिहास उतना ही जटिल है जितना इसका सामाजिक ढांचा।
1980 के दशक में यहां कांग्रेस नेता श्याम सुंदर सिंह धीरज का दबदबा रहा। 1990 आते-आते समीकरण बदले और उनके समर्थक दिलीप सिंह ने बाजी मार ली, जो 1995 में भी विजयी रहे।
2000 में मोकामा की राजनीति में एक और बाहुबली चेहरा उभरा—सूरजभान सिंह। राजद के दिलीप सिंह को हराकर उन्होंने अपना प्रभाव स्थापित किया।
2005 में इस सीट पर अनंत सिंह का प्रवेश हुआ और जदयू के टिकट पर उन्होंने दोनों चुनाव जीते। 2010 में भी वे जदयू से विजयी रहे।
2015 में अनंत सिंह निर्दलीय के रूप में जीते, जबकि 2020 में उन्होंने राजद के उम्मीदवार के रूप में जीत दर्ज की। 2022 के उपचुनाव में उनकी पत्नी राजद से विजयी रहीं।
2025 में यह सीट फिर दो बाहुबलियों—जदयू के अनंत सिंह और राजद के सूरजभान सिंह—के बीच सीधी टक्कर का मैदान बनी है।
बदले हुए समीकरण और जातीय गणित
मोकामा का चुनावी परिदृश्य लंबे समय तक एनडीए और महागठबंधन के आधार वोटों से तय होता रहा है।
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एनडीए को सवर्ण, वैश्य, कुशवाहा और कुर्मी वोटरों का समर्थन मिलता रहा।
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महागठबंधन का आधार यादव, मुस्लिम, ओबीसी और कुछ दलित समुदाय रहे।
2020 में पासवान मतदाताओं का बड़ा हिस्सा जदयू के खिलाफ गया था, जिससे समीकरण और उलझे। यादव नेता दुलारचंद यादव की हत्या के बाद संभावित त्रिकोणीय मुकाबला अब दो ध्रुवों में सिमट गया है।
2025 के रण में सवर्ण बनाम पिछड़ा वर्ग की टक्कर में निर्णायक भूमिका अब धानुक, कुर्मी और दलित वोटरों की बन गई है, जिनकी पसंद जीत का पूरा रुख बदल सकती है।