नई दिल्ली: 2020 के दिल्ली दंगों से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को गुलफिशा फातिमा की जमानत याचिका पर सुनवाई हुई। अपने वकील अभिषेक मनु सिंघवी के माध्यम से उन्होंने अदालत को बताया कि दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में ‘रिजीम चेंज ऑपरेशन’ यानी सत्ता बदलने की साजिश का कोई जिक्र नहीं है।
सिंघवी ने जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच के सामने कहा कि फातिमा को लगभग छह साल से जेल में रखा गया है और ट्रायल में देरी हैरान करने वाली है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस मामले में पुलिस के आरोप जैसे कि ‘असम को भारत से अलग करने की साजिश’ पूरी तरह से बेबुनियाद हैं और उनका आधार स्पष्ट नहीं किया गया।
सिंघवी ने यह भी कहा कि जून 2021 में हाईकोर्ट से फातिमा के सह-आरोपी नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत मिल चुकी है, जबकि फातिमा अब भी जेल में हैं। उन्होंने अदालत से अपील की कि फातिमा को ‘अंतहीन हिरासत’ में नहीं रखा जा सकता।
वकील ने यह भी तर्क दिया कि पुलिस द्वारा आरोपित ‘सीक्रेट मीटिंग’ का दावा गलत है क्योंकि बैठक की जानकारी सोशल मीडिया पर उपलब्ध है और कोई बरामदगी या साक्ष्य नहीं मिले।
फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस मामले में उमर खालिद, शरजील इमाम, मीरान हैदर और रहमान सहित कई आरोपियों पर UAPA के तहत गंभीर आरोप लगाए गए हैं। यह दंगे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुए थे।
गुलफिशा फातिमा की जमानत याचिका में उनका कहना है कि वह पहले ही लगभग छह साल जेल में रह चुकी हैं और उनके खिलाफ आरोपों को साबित करने में पुलिस असफल रही है, इसलिए उन्हें तुरंत जमानत दी जानी चाहिए।