यूपी।सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कैबिनेट ने जेल मैनुअल में पहले संशोधन को मंजूरी दे दी है। इसके तहत अब जेलों में बंदियों से जाति के आधार पर किसी भी प्रकार का काम नहीं लिया जाएगा और बंदियों के अभिलेखों में जाति का उल्लेख नहीं होगा। यह कदम संविधान में निहित समानता और भेदभाव-रहितता के सिद्धांतों के अनुरूप उठाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने सुकन्या शांथा बनाम भारत संघ एवं अन्य मामले में सुनवाई के दौरान यह निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा कि कई राज्यों के जेल मैनुअल में अभी भी ऐसे प्रावधान हैं, जो कैदी वर्गीकरण, श्रम आवंटन और अनुशासन में जाति, धर्म या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देते हैं। सभी राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे ऐसे संदर्भों को हटाएँ और जेल की व्यवस्था सुधारात्मक, वस्तुनिष्ठ और संवैधानिक मानकों के अनुसार हो।
कैबिनेट ने क्या किया बदलाव
कैबिनेट ने अब जेल अभिलेखों और वारंटों से जाति का कॉलम हटा दिया है। साथ ही बंदियों के कार्य आवंटन, वर्गीकरण और सजा में छूट से संबंधित नीतियाँ केवल उनके कौशल और सुधारात्मक मानकों पर आधारित होंगी।
जाति आधारित प्रावधानों का अंत
प्रदेश की जेलों में पहले से ही जाति के आधार पर काम का बंटवारा नहीं किया जाता था। केवल रजिस्टर में जाति का उल्लेख होता था, जिससे नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो में रिपोर्टिंग में जानकारी मिलती थी। अब यह प्रावधान भी समाप्त हो गया है। इससे बंदियों से जुड़े डेटा में बदलाव हो सकता है।
जानकारों के अनुसार, पूर्व में अनुसूचित जाति के बंदियों को सफाई और अन्य कार्यों में अधिक पारिश्रमिक और सजा में छूट मिलती थी। अंग्रेजों के जमाने में हरियाणा और राजस्थान की जेलों में बावरिया जाति से जुड़े बंदियों के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए थे। सभी राज्यों में अंग्रेजों के बनाए जेल मैनुअल में यह प्रावधान था कि बंदियों को उनके कौशल के अनुसार कार्य दिया जाए।
इस संशोधन से जेलों में जातिगत भेदभाव समाप्त होगा और बंदियों की कार्य और सुधार प्रक्रिया पूरी तरह निष्पक्ष और संवैधानिक मानकों पर आधारित होगी।