जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने एक विशेष बातचीत में जिहाद के वास्तविक अर्थ और इसके प्रति फैली गलतफहमियों पर विस्तार से बात की। समाचार एजेंसी एएनआई को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि जिहाद का सबसे व्यापक और प्रमुख अर्थ आत्म-सुधार तथा लक्ष्य के प्रति स्पष्टता बनाए रखना है। उन्होंने स्पष्ट किया कि अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना भी जिहाद का ही एक रूप माना जाता है।
‘वंदे मातरम’ को अनिवार्य बनाना भारत की भावना नहीं’
वंदे मातरम को लेकर अपनी हालिया टिप्पणियों पर उन्होंने कहा कि कई जगह इसे बोलने के लिए दबाव बनाया जा रहा है, जो उनकी दृष्टि में भारत की मूल भावना के विपरीत है। मदनी के अनुसार, जमीयत इस विषय पर पहले भी व्यापक चर्चा कर चुकी है और यदि इसे अनिवार्य करने की कोशिश की गई, तो संगठन इसे अदालत में चुनौती दे सकता है। उन्होंने कहा कि फैसला लेने से पहले नागरिक समाज और संबंधित पक्षों से संवाद स्थापित किया जाएगा।
‘इस्लामिक शब्दों का दुरुपयोग किया गया’
आतंकवाद और इस्लाम से जुड़े शब्दों के गलत उपयोग पर उन्होंने चिंता जताई। मदनी ने कहा कि आतंकवादियों ने धार्मिक शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया, जबकि जिहाद को उन्होंने हमेशा आत्म-संघर्ष या सुधार के संदर्भ में समझा है। उन्होंने कहा, “जो हिंसा फैलाते हैं, वे ‘फसादी’ हैं, और असली जिहाद इंसान के भीतर सुधार लाने के प्रयास से जुड़ा है।”
‘मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए नए शब्द गढ़े गए’
मदनी ने आरोप लगाया कि सरकार और विभिन्न संस्थानों में जिहाद शब्द का नकारात्मक उपयोग कर मुसलमानों को बदनाम करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। उनके अनुसार, ‘लव जिहाद’, ‘जमीन जिहाद’ और ‘वोट जिहाद’ जैसे शब्द इसी उद्देश्य से गढ़े गए हैं। उन्होंने कहा कि जिहाद एक पवित्र अवधारणा है जिसे गलत ढंग से पेश करना अनुचित है।
‘जिहाद के सही अर्थ बताना मेरी जिम्मेदारी’
उन्होंने कहा कि लंबे समय से जिहाद को इस्लाम से जोड़कर अपमानजनक तरीकों से पेश किया जा रहा है। उन्होंने कहा अब तो सरकारी स्तर पर भी मुसलमानों को ‘जिहादी’ कहा जाने लगा है। मदनी का मानना है कि ऐसे माहौल में जिहाद के वास्तविक अर्थ को समाज के सामने स्पष्ट करना उनकी जिम्मेदारी है।