शाबास कादिर राणा !

माता वैष्णो देवी मंदिर मार्ग पर अर्धकुंवारी गुफा के समीप मुजफ्फरनगर के मोहल्ला रामपुरी के तीन परिवारों के सदस्य भूस्खलन के शिकार हो गए। मन्तेश, आकांक्षा, रामबीरी, अंजली, बालक अनन्त व दीपेश को उनके परिजनों ने खो दिया। रामलीला टीला मोहल्ले का युवक कार्तिकेय भी त्रासदी का शिकार बना। इस दु:खद दुर्घटना से शहर और पूरे मुजफ्फरनगर जिले में शोक एवं संवेद‌ना की लहर छा गई। प्रत्येक नगरवासी इस दुर्घटना से मर्माहत था।

अनेक जनप्रतिनिधि, मंत्री, सांसद, समाजसेवियों ने पीड़ितों के आवासों पर जाकर सांत्वना दी, ढांढस बंधाया। मुजफ्फरनगर के पूर्व सांसद कादिर राणा भी पीड़ित परिजनों से मिले और शोक जताया। यद्यपि किसी के दिवंगत होने से पैसे से उसकी प्रतिपूर्ति नहीं हो पाती फिर भी आर्थिक सहायता से कुछ सहायता मिलती है, खासकर तब, जब पीड़ित परिजनों की आर्थिक स्थिति सामान्य हो। कादिर राणा ने अपने दो नन्हें पुत्रों को गंवाने वाले अजय कुमार को 50 हजार रूपये की आर्थिक सहायता प्रदान की। शमशान पहुंच कर वे मृतकों के अंतिम संस्कार में भी सम्मिलित हुए।

जब राजनीति ने हिन्दू-मुस्लिम की लकीर खींच दी है, कादिर राणा की यह सदाशयता सराहनीय है। वैसे, जो कादिर राणा को समीप से जानते हैं कि राणा परिवार में उनकी प्रवृत्ति और दानशीलता की आदत अलग है। सिर्फ किसी खास दिन नहीं, वरन् प्रतिदिन कादिर राणा अपना काम शुरू करने से पहले जरूरतमंद लोगों से मिलते हैं, प्रत्येक को एक धनराशि प्रदान करते हैं। यह कार्य उनकी रोज की दिनचर्या में शामिल है।

5-6 दशक पूर्व यह दानशीलता और सहायता की प्रवृत्ति थानाभवन से निर्वाचित विधायक कुंवर असगर अली खां में भी देखी थी। अंसारी रोड़ स्थित उनकी रिहाइश पर रोज लोगों की भीड़ लगी रहती थी। हिन्दू आगंतुकों के लिए उन्होंने ब्राह्मण रसोइया रखा हुआ था, वे किसी को भोजन कराये बिना नहीं जाने देते थे। खुद पेंचदार हुक्का इस्तेमाल करते थे, हिन्दुओं के लिए अलग हुक्के रखवाये हुए‌ थे।

जकात, दान, सहायता के बीच कोई सीमा रेखा नहीं होती। लोग आज कहते हैं- आतंकी या बदमाश का धर्म नहीं होता, लेकिन सच्चे धर्म को भूलकर दानशीलता में भी लकीर खींच देते हैं। कादिर राणा शायद सहायता के मामले में इनसे कुछ अलग हैं।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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