थाईलैंड की राजनीति में शुक्रवार को बड़ा बदलाव देखने को मिला, जब प्रधानमंत्री अनुतिन चर्नवीराकुल को संसद भंग करने के लिए शाही अनुमति मिल गई। इस आदेश के बाद देश में अगले साल की शुरुआत में आम चुनाव कराए जाने का रास्ता साफ हो गया है। संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार, आदेश जारी होने के 45 से 60 दिनों के भीतर प्रतिनिधि सभा चुनाव कराए जाएंगे। इस अवधि में अनुतिन सीमित अधिकारों के साथ कार्यवाहक प्रधानमंत्री की भूमिका निभाते रहेंगे। इस दौरान नई बजट योजनाओं को मंजूरी देने पर रोक रहेगी।

सीमा तनाव के बीच आया राजनीतिक फैसला

प्रधानमंत्री अनुतिन ने यह कदम ऐसे समय उठाया है जब देश कम्बोडिया के साथ पुराने सीमा विवाद को लेकर गंभीर टकराव झेल रहा है। दोनों देशों के बीच इस सप्ताह हुई झड़पों में लगभग दो दर्जन लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि बड़ी संख्या में नागरिक विस्थापित हुए हैं। गुरुवार देर रात अनुतिन ने फेसबुक पर लिखा कि वह “सत्ता जनता को लौटाना” चाहते हैं।

सिर्फ तीन महीने पहले संभाली थी पीएम की कुर्सी

अनुतिन ने तीन महीने पहले ही पदभार संभाला था। उन्होंने पैटोंगटार्न शिनावात्रा की जगह ली, जिनकी सरकार नैतिक आचरण से जुड़े विवाद में फंसने के बाद गिर गई थी। सितंबर में हुए संसदीय मतदान में विपक्षी पीपल्स पार्टी ने अनुतिन का समर्थन इस शर्त पर किया था कि वे चार महीने के भीतर संसद भंग करेंगे और नए संविधान के लिए जनमत संग्रह का रास्ता खोलेंगे।

संविधान संशोधन विवाद बना असली वजह

थाई राजनीति का केंद्र इस समय संविधान में संशोधन का मुद्दा है। अनुतिन की भूमजथाई पार्टी ने संविधान सुधार प्रक्रिया में सीनेट के एक-तिहाई मतों को कायम रखने के पक्ष में वोट दिया, जिससे पीपल्स पार्टी नाराज़ हो गई और उसने अविश्वास प्रस्ताव की चेतावनी दे दी। माना जा रहा है कि यही टकराव संसद भंग करने की प्रमुख वजह बना।

कंबोडिया विवाद के बाद गठबंधन से दूर हुए अनुतिन

अनुतिन पहले पूर्व प्रधानमंत्री पैटोंगटार्न की कैबिनेट में मंत्री थे, लेकिन कंबोडिया सीमा तनाव से जुड़ी एक राजनीतिक विवाद के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी पार्टी को गठबंधन से बाहर कर लिया। पैटोंगटार्न को जुलाई में एक विवादित फोन कॉल मामले में आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाए जाने के बाद पद छोड़ना पड़ा था।

नई सरकार के अल्पमत में आने की आशंका

विपक्षी पीपल्स पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह सरकार में शामिल नहीं होगी, जिससे संभावित नई सरकार के अल्पमत में फंसने की आशंका बढ़ गई है। यह पार्टी लंबे समय से सेना समर्थित पुराने संविधान में व्यापक बदलाव की मांग करती आ रही है, जिससे लोकतांत्रिक ढांचा मजबूत हो सके।