फिलिस्तीन के प्रख्यात लेखक और पूर्व कैदी नासेर अबू सरूर ने आरोप लगाया है कि गाजा युद्ध के दौरान इजराइली जेलों में कैदियों पर अमानवीय अत्याचारों की घटनाएं कई गुना बढ़ गईं। उनका कहना है कि इजराइल ने अपनी जेलों को “युद्ध का नया मोर्चा” बना दिया था, जहां फिलिस्तीनी बंदियों को यातनाएं दी गईं।

अबू सरूर को 32 साल से अधिक की सजा काटने के बाद पिछले महीने रिहाई मिली है। उन्हें और उम्रकैद भुगत रहे 150 से अधिक कैदियों को अमेरिका की मध्यस्थता में हुए संघर्षविराम के बाद रिहा किया गया, हालांकि सभी को सीधे मिस्र भेज दिया गया, जहां वे अब अस्थायी रूप से रह रहे हैं।

कौन हैं नासेर अबू सरूर

साल 1969 में जन्मे अबू सरूर को पहली इंतिफादा (फिलिस्तीनी विद्रोह) के दौरान गिरफ्तार किया गया था। उन पर एक इजराइली अधिकारी की हत्या में सहयोग का आरोप था। जेल में रहते हुए उन्होंने राजनीति विज्ञान में स्नातक और परास्नातक की डिग्री हासिल की और कविता तथा संस्मरण लेखन शुरू किया।

“जेलों का माहौल युद्ध जैसा हो गया था”

सरूर के मुताबिक, अक्टूबर 2023 में गाजा युद्ध शुरू होते ही जेलों में सख्ती और हिंसा बढ़ गई। सुरक्षा कर्मियों ने खुद को सैनिक समझते हुए कैदियों के साथ बर्बर व्यवहार करना शुरू किया। कई बंदियों को पीटा गया, भूखा रखा गया और सर्द मौसम में बिना कपड़ों के छोड़ दिया गया। उन्होंने बताया कि कैदियों से पढ़ने-लिखने और संवाद की स्वतंत्रता भी छीन ली गई।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2023 से अगस्त 2025 के बीच इजराइली हिरासत में 75 फिलिस्तीनियों की मौत हुई। हालांकि, इजराइल ने इन आरोपों को सिरे से नकार दिया है।

आजादी के बाद भी असमंजस

रिहाई के बाद मिस्र पहुंचने पर अबू सरूर और अन्य कैदियों को पांच सितारा होटल में ठहराया गया। लेकिन दशकों की कैद के बाद यह “आजादी” उन्हें अवास्तविक लगी। उन्होंने बताया कि सुरक्षा कर्मियों की मौजूदगी और बार-बार स्थान बदलने की वजह से उन्हें यह एहसास नहीं हो पा रहा था कि वे वाकई आजाद हैं या अब भी किसी निगरानी में।

“हमारी रिहाई के बाद भी हमें लगता था कि कोई हमें देख रहा है,” अबू सरूर ने कहा, “कई सालों की कैद ने हमें आजादी का अर्थ ही भुला दिया।”