अमेरिका की एक संघीय अदालत ने ट्रंप प्रशासन की निर्वासन नीति पर सवाल उठाते हुए अहम आदेश दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि अल सल्वाडोर की जेल में भेजे गए वेनेजुएला के कैदियों को भी कानूनी अपील का पूरा अधिकार मिलना चाहिए। न्यायालय ने कहा कि या तो इन कैदियों को अदालत में अपनी बात रखने का मौका दिया जाए या फिर उन्हें अमेरिका वापस लाया जाए।

अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट जज जेम्स बोसबर्ग ने सरकार को निर्देश दिया है कि दो सप्ताह के भीतर उन मामलों के लिए ठोस योजना तैयार की जाए, जिनमें बाद में कैदियों की अदला-बदली के तहत वेनेजुएला भेजे गए लोगों को अल सल्वाडोर से स्थानांतरित किया गया था।

अपने आदेश में जज बोसबर्ग ने कहा कि इन लोगों को बिना किसी पूर्व सूचना और सुनवाई के देश से बाहर भेजा गया, जो उनके संवैधानिक अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। अदालत ने माना कि इस तरह की कार्रवाई में प्रभावित लोगों को विरोध या बचाव का अवसर ही नहीं दिया गया।

यह मामला ट्रंप प्रशासन की सख्त अप्रवासन नीति से जुड़ा एक बड़ा कानूनी विवाद बन गया है। मार्च में सरकार ने 18वीं सदी के युद्धकालीन कानून का सहारा लेते हुए कुछ वेनेजुएला नागरिकों को आपराधिक गिरोह से जुड़े होने के आरोप में अल सल्वाडोर स्थित टेररिज्म कन्फाइनमेंट सेंटर भेज दिया था।

अदालत के इस फैसले से निर्वासित किए गए लोगों को अब यह चुनौती देने का रास्ता खुल गया है कि वे किसी आपराधिक गिरोह, विशेषकर ट्रेन डी अरागुआ गैंग, से जुड़े हैं या नहीं। जुलाई में अमेरिका और वेनेजुएला के बीच कैदियों की अदला-बदली के दौरान 200 से अधिक प्रवासियों को वापस भेजा गया था।

इस मामले में प्रवासियों की ओर से पैरवी कर रहे अमेरिकी सिविल लिबर्टीज यूनियन (ACLU) के वकील ली गेलर्नट ने कहा कि अदालत का यह फैसला स्पष्ट करता है कि सरकार बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाए लोगों को किसी विदेशी जेल में भेजकर जिम्मेदारी से नहीं बच सकती।