बांग्लादेश में हालिया हिंसा के बीच वहां कार्यक्रम देने गए भारतीय कलाकारों के सामने हालात किस कदर भयावह हो गए थे, इसकी झलक कोलकाता लौटे एक युवा तबला वादक की आपबीती में सामने आई है। ढाका में फंसे कलाकारों को सुरक्षित निकलने के लिए अपनी पहचान छुपानी पड़ी, नाम बदलना पड़ा और हर कदम बेहद सतर्कता के साथ उठाना पड़ा। यह घटना केवल एक संगीतकार की कहानी नहीं, बल्कि उस डर की तस्वीर है, जो अशांति के दौर में आम लोगों की जिंदगी पर हावी हो जाता है।

तबला वादक मैनाक बिस्वास के मुताबिक, ढाका पहुंचने के कुछ ही समय बाद हालात तेजी से बिगड़ने लगे। जिन सरोद कलाकार के साथ वे गए थे, वे किसी तरह पहले ही भारत लौट आए, लेकिन बाकी टीम हिंसा की चपेट में आ गई। प्रदर्शन, तोड़फोड़ और बढ़ते भारत-विरोधी माहौल के कारण कलाकारों को करीब दो दिन तक होटल में ही छिपकर रहना पड़ा। बाहर निकलने की नौबत आई तो भारतीय पहचान सामने न आए, इसके लिए स्थानीय नामों का सहारा लिया गया।

कार्यक्रम रद्द, सांस्कृतिक केंद्र में तोड़फोड़
ढाका के धनमंडी इलाके में स्थित एक सांस्कृतिक केंद्र में प्रस्तावित संगीत कार्यक्रम हिंसक भीड़ के हमले के बाद रद्द कर दिया गया। सरोद वादक शिराज़ अली खान किसी तरह कोलकाता लौटने में सफल रहे, लेकिन उनकी मां और टीम के अन्य सदस्य, जिनमें मैनाक बिस्वास भी शामिल थे, वहीं फंसे रह गए। हमले के दौरान वाद्ययंत्रों को नुकसान पहुंचाया गया और परिसर में व्यापक तोड़फोड़ की गई।

पहचान छुपाना बना सुरक्षा का रास्ता
मैनाक बिस्वास ने बताया कि होटल से बाहर निकलते समय उन्होंने पूरी सावधानी बरती। टैक्सी बुक करते समय भी उन्होंने अपना नाम बदलकर बताया और होटल कर्मचारियों की मदद से यात्रा की। उनके अनुसार, सड़कों पर भारत-विरोधी भावना साफ महसूस की जा सकती थी। उन्हें डर था कि अगर बोली या पहचान से सच्चाई सामने आ गई तो स्थिति और गंभीर हो सकती थी। ऐसे में चुप रहना ही सबसे सुरक्षित विकल्प था।

हिंसा की पृष्ठभूमि
बताया जा रहा है कि यह हिंसा इंकलाब मंच के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद भड़की। जुलाई 2024 के आंदोलन से जुड़े इस नेता की मौत के बाद कई इलाकों में तनाव फैल गया। इस दौरान मीडिया संस्थानों और सांस्कृतिक स्थलों को भी निशाना बनाया गया। राजनीतिक अस्थिरता और पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के दौर से जुड़े विवादों ने हालात को और संवेदनशील बना दिया।

एयरपोर्ट पहुंचकर मिली राहत
टीम के शेष सदस्यों को घंटों तक डर के साए में एयरपोर्ट लाउंज में इंतजार करना पड़ा। सड़कों पर लगातार हो रहे प्रदर्शनों और भीड़ की खबरों के बीच हर कदम फूंक-फूंककर रखना पड़ा। मैनाक को अपने तबले की भी चिंता सता रही थी, क्योंकि उन्होंने वाद्ययंत्रों को नुकसान पहुंचने की तस्वीरें देखी थीं। कोलकाता एयरपोर्ट पर तबला सुरक्षित मिलने के बाद ही उन्हें सुकून मिला।

कोलकाता लौटने के बाद मैनाक बिस्वास ने कहा कि वे जल्द ही मंच पर प्रस्तुति देंगे, लेकिन बांग्लादेश में बिताए वे दिन लंबे समय तक यादों में रहेंगे। उन्होंने कहा कि भाषा और संस्कृति की निकटता के बावजूद हिंसा का यह अनुभव उन्हें भीतर तक झकझोर गया है और हालात सामान्य होने तक दोबारा वहां जाने की हिम्मत जुटा पाना आसान नहीं होगा।