गुवाहाटी। महाराष्ट्र में भाषा को लेकर मचे घमासान के बीच अब असम में भी भाषाई तनाव उभरने लगा है। ऑल बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन के एक पदाधिकारी मैनुद्दीन अली ने जनगणना के दौरान मुस्लिम समुदाय से असमिया की जगह बंगाली को मातृभाषा के तौर पर दर्ज कराने की अपील कर डाली, जिसके बाद विवाद गहरा गया।
मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि असमिया राज्य की वैधानिक और स्थायी राजभाषा है और भाषा को राजनीतिक या भावनात्मक हथियार की तरह इस्तेमाल करना निंदनीय है।
उन्होंने कहा, “यदि कोई व्यक्ति जनगणना में बंगाली को मातृभाषा के रूप में दर्ज करता है, तो इससे यह पहचानने में मदद मिलेगी कि राज्य में कितने लोग विदेशी पृष्ठभूमि से हैं। भाषा को ब्लैकमेलिंग के ज़रिया नहीं बनाया जाना चाहिए।”
बयान पर मचा बवाल, नेता निलंबित
विवादित बयान सामने आने के बाद छात्र संगठन ने मैनुद्दीन अली को संगठन से निलंबित कर दिया है। अली ने सार्वजनिक रूप से अपने बयान पर खेद जताते हुए माफी भी मांग ली है।
25 हजार एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाया गया
मुख्यमंत्री सरमा ने यह भी बताया कि राज्य सरकार की ओर से अतिक्रमण हटाओ अभियान लगातार जारी है। पिछले चार वर्षों में राज्यभर में 25,000 एकड़ से अधिक भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है।
हालांकि, इस मुद्दे पर विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार को घेरते हुए आरोप लगाया कि बेदखली के नाम पर वैध भारतीय नागरिकों को निशाना बनाया गया है। पार्टी ने वादा किया कि यदि उन्हें सत्ता में मौका मिला, तो प्रभावित नागरिकों को उचित मुआवज़ा दिया जाएगा।