राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि महात्मा गांधी ने अपने लेखन में स्पष्ट किया था कि अंग्रेजों ने भारत के बारे में यह झूठी कहानी फैलाई कि यहां उनके आने से पहले कोई राष्ट्रीय एकता नहीं थी। नागपुर में राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव में भागवत ने गांधी की 1908 में लिखी किताब ‘हिंद स्वराज’ का हवाला देते हुए कहा कि भारत प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से एकजुट रहा है।
भागवत ने बताया कि गांधी ने लिखा था कि ब्रिटिश शासन ने यह संदेश फैलाने की कोशिश की कि भारत को एक राष्ट्र बनने में सदियों लगेंगे, जबकि वास्तविकता यह थी कि भारत की सांस्कृतिक एकता ने ही अंग्रेजों को शासन स्थापित करने में मदद की।
भारत की राष्ट्र अवधारणा पश्चिमी मॉडल से अलग
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत का राष्ट्र विचार बहुत प्राचीन और प्राकृतिक है, जो पश्चिमी नेशन-स्टेट मॉडल से बिल्कुल अलग है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति विवाद और टकराव से दूर रहते हुए एकता को बढ़ावा देती रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत में राष्ट्रीयता का अर्थ अहंकार या विवाद नहीं, बल्कि आपसी जुड़ाव और सहअस्तित्व है।
भागवत ने कहा कि अत्यधिक राष्ट्रीय गर्व और राष्ट्रवाद ने विश्व के अन्य हिस्सों में दो विश्व युद्धों को जन्म दिया, लेकिन भारत में राष्ट्रभाव हमेशा सहयोग और समरसता पर आधारित रहा।
वसुधैव कुटुंबकम और वैश्वीकरण
भागवत ने कहा कि भारत में वैश्वीकरण का विचार प्राचीन काल से मौजूद है, जिसे ‘वसुधैव कुटुंबकम’ कहा जाता है। उन्होंने वर्तमान वैश्वीकरण को आंशिक बताया और कहा कि असली वैश्वीकरण अभी आना बाकी है, जिसमें भारत पूरे विश्व को एक परिवार की तरह जोड़ने का काम करेगा।
एआई और युवाओं के लिए संदेश
युवा लेखकों से संवाद में भागवत ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) को रोका नहीं जा सकता, लेकिन इंसान को इसका नियंत्रक बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि एआई का इस्तेमाल मानवता के हित में होना चाहिए। भागवत ने ज्ञान से अधिक विवेक को महत्व देते हुए कहा कि सच्चा संतोष दूसरों की मदद करने में है।
आरएसएस प्रमुख ने अंत में कहा कि भारत ने धर्म, भाषा, खानपान, परंपराओं और राज्यों की विविधताओं के बावजूद सदैव एकता बनाए रखी है, यही इसकी मूल संस्कृति का परिचायक है।