भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 30 जुलाई को नासा के साथ संयुक्त रूप से विकसित निसार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) उपग्रह का प्रक्षेपण करने जा रहा है। इस मिशन के तहत उपग्रह को जीएसएलवी-एफ18 रॉकेट की मदद से आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से शाम 5:40 बजे पृथ्वी की सूर्य-स्थिर कक्षा (सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट) में स्थापित किया जाएगा।
इसरो प्रमुख डॉ. वी. नारायणन ने जानकारी दी कि यह पहली बार है जब किसी उपग्रह को जीएसएलवी रॉकेट के जरिये इस प्रकार की कक्षा में भेजा जा रहा है। यह कक्षा ऐसी होती है, जहां से उपग्रह पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों को पार करते हुए हर बार एक ही रोशनी की स्थिति में पृथ्वी का निरीक्षण कर सकता है।
दो रडार बैंड से होगी निगरानी
निसार मिशन के तहत उपग्रह में दो प्रकार के रडार बैंड शामिल हैं—नासा द्वारा विकसित एल-बैंड और इसरो द्वारा तैयार एस-बैंड। इनकी मदद से उपग्रह पेड़-पौधों, ग्लेशियरों, ध्रुवीय क्षेत्रों और महासागरों सहित पृथ्वी की सतह पर सूक्ष्म परिवर्तनों की निगरानी करेगा। मिशन में प्रयुक्त एस-बैंड पेलोड इसरो की अहमदाबाद स्थित प्रयोगशाला में तैयार किया गया है, जबकि एल-बैंड पेलोड अमेरिका की जेट प्रोपल्शन लैब (JPL) ने विकसित किया है।
19 मिनट में कक्षा में पहुंचेगा उपग्रह
प्रक्षेपण के लगभग 19 मिनट बाद उपग्रह को उसकी निर्धारित कक्षा में स्थापित कर दिया जाएगा। जीएसएलवी-एफ18 रॉकेट की कुल लंबाई 51.7 मीटर है और इसे चेन्नई से लगभग 135 किलोमीटर दूर स्थित लॉन्च पैड से छोड़ा जाएगा।
हर 12 दिन में पूरी पृथ्वी का स्कैन
इसरो के अनुसार, निसार उपग्रह हर 12 दिनों में पृथ्वी की सम्पूर्ण सतह को स्कैन करेगा और सभी मौसमों में, दिन-रात उच्च-रिजॉल्यूशन डाटा प्रदान करेगा। यह उपग्रह पेड़-पौधों में हो रहे बदलाव, बर्फ की चादरों के खिसकने, और भूगर्भीय गतिविधियों जैसे भूमि विकृति को मापने में सक्षम होगा।
वैश्विक उपयोग के लिए खुले होंगे डेटा स्रोत
मिशन से प्राप्त आंकड़े पूरी दुनिया में वैज्ञानिक और व्यावसायिक शोध कार्यों के लिए उपयोगी होंगे। इसरो इन आंकड़ों का प्रसंस्करण कर इन्हें सार्वजनिक डोमेन में जारी करेगा, जिससे विश्वभर के शोधकर्ता इसका उपयोग कर सकेंगे। इससे हिमालय, अंटार्कटिका और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यावरणीय परिवर्तनों की गहराई से निगरानी संभव हो सकेगी।
आपदा प्रबंधन से लेकर मौसम पूर्वानुमान तक होगा उपयोग
निसार मिशन से समुद्र के जलस्तर में बदलाव, तूफानों की निगरानी, जहाजों की पहचान, मिट्टी की नमी में उतार-चढ़ाव और जल संसाधनों की मैपिंग जैसे कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त की जा सकेंगी। यह उपग्रह भूकंप के चलते जमीन में आई दरारों या बर्फ की परत में हुए बदलाव को भी माप सकेगा।
अद्वितीय रडार तकनीक
उपग्रह में सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का प्रयोग किया गया है, जिससे यह बेहद स्पष्ट चित्रों के साथ पृथ्वी का निरीक्षण कर सकता है। 12 मीटर का एक विशेष मेश रिफ्लेक्टर एंटीना इन दोनों रडार से डेटा इकट्ठा करेगा, जिसे इसरो की I3K बस प्रणाली से जोड़ा गया है। यह उपग्रह 242 किलोमीटर की चौड़ाई में पृथ्वी की सतह को स्कैन करने में सक्षम होगा।