नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय पुलिस या जांच एजेंसी को गिरफ्तारी का कारण लिखित रूप में और उस व्यक्ति की समझ में आने वाली भाषा में बताना अनिवार्य होगा। अदालत ने कहा कि यह आदेश नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी को और मज़बूती देगा।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह निर्णय ‘मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य’ मामले में सुनाया। यह मामला जुलाई 2024 में चर्चा में आए मुंबई बीएमडब्ल्यू हिट-एंड-रन केस से जुड़ा हुआ था।
52 पन्नों के अपने विस्तृत फैसले में न्यायमूर्ति मसीह ने लिखा कि संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तार व्यक्ति को यह जानना उसका मौलिक अधिकार है कि उसे किस कारण से गिरफ्तार किया गया है। यह केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की मूल सुरक्षा का हिस्सा है।
कोर्ट ने कहा कि अगर गिरफ्तारी के समय तत्काल लिखित जानकारी देना संभव न हो, तो अधिकारी पहले मौखिक रूप से कारण बता सकते हैं। लेकिन लिखित सूचना ‘उचित समय के भीतर’, और गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले देना अनिवार्य होगा। ऐसा न करने पर गिरफ्तारी और हिरासत दोनों को अवैध माना जाएगा और व्यक्ति को रिहा किया जा सकेगा।
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि यह नियम सभी तरह के अपराधों और कानूनों पर लागू होगा। चाहे वह भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत हों या किसी अन्य अधिनियम के। कोर्ट ने अपने आदेश की प्रति सभी उच्च न्यायालयों, राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजने का निर्देश दिया है।
अदालत ने यह भी कहा कि गिरफ्तारी के कारण व्यक्ति को उसकी समझ की भाषा में बताना अनिवार्य है, क्योंकि यह सुनिश्चित करता है कि वह आरोपों को सही तरह से समझ सके और अपने अधिकारों का प्रयोग कर सके। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, यह सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 के तहत दी गई स्वतंत्रता की गारंटी का मूल आधार है।