सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों में पैसे देकर कराई जाने वाली ‘विशेष पूजाओं’ पर कड़ी नाराजगी जताई है और इसे देवता के विश्राम में बाधा डालने वाला बताया है। सोमवार, 15 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसी प्रथाएं परंपरा और धार्मिक मर्यादा के खिलाफ हैं। यह टिप्पणी वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी जी मंदिर में दर्शन समय और पूजा पद्धतियों में बदलाव को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई के दौरान आई। अदालत ने मामले में उत्तर प्रदेश सरकार और सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त उच्चस्तरीय मंदिर प्रबंधन समिति से जवाब मांगा है।

मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और विपुल एम. पामचोली शामिल हैं, ने संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया। मामले की अगली सुनवाई जनवरी के पहले सप्ताह में होगी।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान और वकील तन्वी दुबे ने मंदिर के दर्शन समय और देहरी पूजा जैसी आवश्यक धार्मिक प्रथाओं में बदलाव के खिलाफ दलील दी। दीवान ने कहा कि दर्शन का समय परंपरा और रीति-रिवाज का हिस्सा है और इस समय का पालन सदियों से होता रहा है।

मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की, “मंदिर दोपहर 12 बजे बंद होने के बाद भगवान को विश्राम का समय नहीं मिलता। जो लोग मोटी रकम देते हैं, उन्हें विशेष पूजा की अनुमति मिलती है, जो देवता के साथ शोषण जैसा है।” उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे समय में केवल पैसे देने वाले लोग बुलाए जाते हैं, जबकि यह देवता का अत्यंत पवित्र विश्राम काल है।

याचिकाकर्ताओं ने बताया कि मंदिर में मौसम के अनुसार अलग-अलग समय-सारिणी लागू होती रही है और सितंबर 2025 में जारी कार्यालय ज्ञापनों के बाद समय में बदलाव से देहरी पूजा जैसी सदियों पुरानी परंपरा बाधित हुई। अदालत ने सुनवाई के बाद संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया।