डाक विभाग ने डाकिए की भूमिका और उसकी संवेदनशीलता को उजागर करने के लिए एक भावनात्मक लघु फिल्म तैयार की है, जिसे सोशल मीडिया पर लोगों द्वारा सराहा जा रहा है। यह डॉक्यूमेंट्री एक छोटी बच्ची की भोलेनाथ को लिखे गए पत्र और उसे मंदिर तक पहुंचाने वाले डाकिए की संवेदनशील यात्रा पर आधारित है।
कहानी उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे पर स्थित मुनकटिया की है, जहां मिष्टी नाम की सात वर्षीय बच्ची के दादा गंभीर रूप से बीमार हो जाते हैं। जब डॉक्टर भी जवाब दे देते हैं, तब मिष्टी भगवान केदारनाथ से प्रार्थना करने के लिए एक पोस्टकार्ड पर पत्र लिखती है और गांव में लगी डाक पेटी में डाल देती है।
पोस्टकार्ड से भावुक हुआ डाकिया, भोलेनाथ तक पहुंचाई गुहार
यह पत्र अगले दिन गौरीकुंड डाकघर पहुंचता है, जहां पोस्टमास्टर एवं पोस्टमैन गणेश गोस्वामी इसे छांटते समय पढ़ते हैं। भोलेनाथ के नाम लिखे इस मासूम पत्र को पढ़कर वे बेहद भावुक हो उठते हैं और मिष्टी की भावना का आदर करते हुए स्वयं पैदल यात्रा कर 16 किलोमीटर दूर स्थित केदारनाथ धाम पहुंच जाते हैं। मंदिर परिसर में पहुंचकर वे यह पत्र भगवान के चरणों में रखते हैं और मिष्टी के दादा के शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करते हैं।
भोलेनाथ का जवाब और मिष्टी की खुशी
कुछ दिन बाद मिष्टी को एक पत्र मिलता है, जिसमें लिखा होता है— “तुम्हारे दादू जल्दी ठीक हो जाएंगे। अपना ख्याल रखना। तुम्हारे भोलेनाथ।” इसके कुछ ही समय बाद उसके दादा स्वस्थ हो जाते हैं, और मिष्टी फिर से उनके साथ खेलने लगती है।
गौरीकुंड डाकघर के पोस्टमास्टर गणेश गोस्वामी ने बताया कि यह लघु फिल्म सितंबर 2024 में भारतीय डाक विभाग के दिल्ली मुख्यालय द्वारा बनाई गई थी। इसका उद्देश्य केवल एक भावनात्मक कहानी दिखाना नहीं, बल्कि यह संदेश देना था कि डाक विभाग केवल पत्रों का नहीं, भावनाओं का भी वाहक है। दुर्गम क्षेत्रों में काम कर रहे डाक कर्मी जानते हैं कि किसी के लिए एक पत्र कितना मायने रखता है।
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