शुक्रवार को भारतीय शेयर बाजार में भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला, जब बाजार नियामक सेबी की जांच के चलते चार प्रमुख कैपिटल मार्केट कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट दर्ज की गई। यह गिरावट एक विदेशी ट्रेडिंग फर्म जेन स्ट्रीट के खिलाफ हुई कार्रवाई के बाद देखने को मिली, जिसने न सिर्फ खुद फर्म को बल्कि उसके भारतीय सहयोगियों और पूरे डेरिवेटिव्स बाजार को प्रभावित कर दिया। एक ही दिन में इन कंपनियों की सामूहिक मार्केट वैल्यू में करीब 12,000 करोड़ रुपये की कमी आई।
सबसे बड़ा झटका नुवामा को, 11% से ज्यादा की गिरावट
इस घटनाक्रम का सबसे गहरा असर जेन स्ट्रीट की भारतीय साझेदार कंपनी नुवामा वेल्थ मैनेजमेंट पर पड़ा, जिसके शेयर दिन के दौरान 11.26% तक टूट गए। गौर करने वाली बात यह है कि सेबी की जांच में नुवामा पर कोई सीधा आरोप नहीं है, लेकिन जेन स्ट्रीट के संभावित अलगाव से राजस्व पर असर की आशंका ने निवेशकों में घबराहट पैदा कर दी।
इसी तरह, बीएसई और एंजेल वन के शेयरों में लगभग 6% की गिरावट आई, जबकि सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (CDSL) के शेयर भी 2% से अधिक टूटे।
बैंक निफ्टी ऑप्शंस में गड़बड़ी का आरोप
सेबी ने जेन स्ट्रीट और उससे जुड़ी इकाइयों पर बैंक निफ्टी ऑप्शंस और संबंधित स्टॉक्स में कथित रूप से अनियमित ट्रेडिंग के आरोप लगाए हैं। नियामक ने इन संस्थाओं को 4,844 करोड़ रुपये की गैरकानूनी कमाई वापस करने का आदेश दिया है। यह कार्रवाई भले ही विशेष रूप से जेन स्ट्रीट के खिलाफ हो, लेकिन उसके प्रभाव से पूरा डेरिवेटिव्स बाजार हिल गया।
ट्रेडिंग वॉल्यूम पर संकट
जेन स्ट्रीट जैसी बड़ी प्रॉप ट्रेडिंग फर्म भारतीय डेरिवेटिव्स बाजार के लगभग 50% ऑप्शंस वॉल्यूम को नियंत्रित करती हैं। ज़ेरोधा के संस्थापक नितिन कामथ ने इस पर चिंता जाहिर की और कहा कि यदि इस तरह की संस्थाएं बाजार से पीछे हटती हैं, तो खुदरा व्यापार पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, जो पहले ही करीब 35% वॉल्यूम का हिस्सा है। इससे एक्सचेंज और ब्रोकरेज दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग को भी झटका
आसित सी. मेहता के इंस्टीट्यूशनल रिसर्च प्रमुख सिद्धार्थ भामरे ने बताया कि जब इतनी बड़ी फर्म पर प्रतिबंध लगता है, तो अन्य बाजार प्रतिभागी भी सतर्क हो जाते हैं और ट्रेडिंग घटा देते हैं। इससे फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (F&O) में लिक्विडिटी घट सकती है, जिससे वॉल्यूम और अधिक प्रभावित होंगे।
कोटक सिक्योरिटीज के डिजिटल बिजनेस प्रमुख आशीष नंदा ने कहा कि हाई-फ्रीक्वेंसी ट्रेडिंग फर्मों की गतिविधियों पर भी इस जांच का व्यापक असर पड़ेगा। उन्होंने बताया कि एचएफटी फर्म्स बाजार में लिक्विडिटी लाती हैं और अगर वे निष्क्रिय होती हैं, तो खुदरा निवेश भी धीमा पड़ सकता है।
खुदरा निवेशकों पर टिके बाजार की उम्मीद
हालांकि, कुछ विशेषज्ञ इस परिदृश्य को लेकर सकारात्मक भी हैं। एंजेल वन के संस्थापक दिनेश ठक्कर ने कहा कि भारत का शेयर बाजार अब संरचनात्मक रूप से मजबूत है, न कि केवल किसी एक चक्र पर आधारित। उन्होंने बताया कि जहां 2018 में खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी डेरिवेटिव्स में केवल 2% थी, वहीं 2025 तक यह आंकड़ा 40% से अधिक तक पहुँच गया है।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि बाजार में यदि एक खिलाड़ी बाहर होता है, तो उसकी जगह जल्दी ही कोई दूसरा ले लेता है। उदाहरण के तौर पर उन्होंने सिटाडेल सिक्योरिटीज, आईएमसी ट्रेडिंग, ऑप्टिवर, जंप ट्रेडिंग और मिलेनियम जैसी अंतरराष्ट्रीय फर्मों का नाम लिया, जो भारत में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए स्थानीय टीमें बना रही हैं और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश कर रही हैं।