अगर कच्चे तेल की कीमतें 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास स्थिर रहती हैं, तो तेल विपणन कंपनियों (OMC) के लिए वित्त वर्ष 2026 में एलपीजी घाटे में लगभग 45 प्रतिशत की कमी होने की संभावना है। केयरएज रेटिंग्स की रिपोर्ट के अनुसार, अगले वित्त वर्ष में एलपीजी से होने वाले घाटे में कमी का मुख्य कारण उच्च खुदरा कीमतें और अंतरराष्ट्रीय बाजार में एलपीजी की कीमतों में गिरावट हो सकता है।
घाटे में कमी की उम्मीद
रिपोर्ट में बताया गया कि अगर कच्चे तेल की कीमतें 65 डॉलर प्रति बैरल पर बनी रहती हैं, तो वित्त वर्ष 2026 में एलपीजी अंडर-रिकवरी में 45 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। अंडर-रिकवरी वह स्थिति होती है, जब तेल कंपनियां एलपीजी सिलेंडर को उनकी वास्तविक लागत से कम कीमत पर बेचती हैं, ताकि घरेलू उपयोग के लिए एलपीजी सस्ती बनी रहे।
घरेलू खपत और आयात निर्भरता
भारत में लगभग 90 प्रतिशत एलपीजी का उपयोग घरेलू खाना पकाने के लिए किया जाता है, जबकि बाकी 10 प्रतिशत औद्योगिक, वाणिज्यिक और मोटर वाहन क्षेत्रों में काम आता है। पिछले दस वर्षों में, घरेलू एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या दोगुनी हो चुकी है, जो 1 अप्रैल 2025 तक लगभग 33 करोड़ तक पहुंच गई है।
आयात पर बढ़ी निर्भरता
रिपोर्ट के मुताबिक, घरेलू उत्पादन की तुलना में एलपीजी की खपत तेजी से बढ़ी है। वित्त वर्ष 2025 में, लगभग 60 प्रतिशत घरेलू एलपीजी की जरूरतें आयात से पूरी हुईं, जबकि एक दशक पहले यह आंकड़ा 46 प्रतिशत था।
अंडर-रिकवरी पर खुदरा कीमतों का असर
वित्त वर्ष 2025 में तेल विपणन कंपनियों को प्रति सिलेंडर लगभग 220 रुपये का घाटा सहना पड़ा, जिससे कुल 41,270 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। हालांकि, 8 अप्रैल 2025 से एलपीजी सिलेंडर की खुदरा कीमत में 50 रुपये की बढ़ोतरी के बाद, वित्त वर्ष 2026 में अंडर-रिकवरी में लगभग 25 प्रतिशत की कमी की उम्मीद है।
अंतरराष्ट्रीय कीमतों में नरमी का असर
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सऊदी कॉन्ट्रैक्ट प्राइस में गिरावट और कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कारण वित्त वर्ष 2026 में अंडर-रिकवरी लगभग 20 प्रतिशत तक कम हो सकती है। इससे तेल कंपनियों को वित्तीय दबाव से राहत मिलने की संभावना है।