इटली में महिलाओं के खिलाफ हिंसा लगातार बढ़ती जा रही है। तीन साल पहले देश ने ज्योर्जिया मेलोनी को पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में चुना था, जिससे यह उम्मीद की गई थी कि महिलाएँ सुरक्षा और समानता के मुद्दों को प्राथमिकता देंगी। लेकिन आलोचक मानते हैं कि हालात और बिगड़े हैं।

महिला अधिकार समूह Non Una Di Meno के अनुसार, 2025 में अब तक 70 से अधिक फेमिसाइड हो चुकी हैं, जबकि पिछले साल यह संख्या 116 थी। ये वे मामले हैं जिनमें किसी महिला की हत्या उसके महिला होने के कारण की गई, ज्यादातर अपराधी उनके पार्टनर या एक्स-पार्टनर रहे।

प्रधानमंत्री मेलोनी ने घरेलू हिंसा को सजा बढ़ाने वाली श्रेणी में शामिल किया है, जिससे अपराधियों को लंबी जेल या कुछ मामलों में उम्रकैद भी हो सकती है। लेकिन विशेषज्ञ और नागरिक समूह कहते हैं कि सजा बढ़ाने से पहले रोकथाम पर ध्यान देना जरूरी है। विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा सेक्स एजुकेशन का बैन है। इटली में स्कूलों में यह आज भी अनिवार्य नहीं है, जबकि संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि शुरुआती उम्र में शिक्षा देने से घरेलू हिंसा, लैंगिक भेदभाव और रिश्तों में असुरक्षा जैसी समस्याएँ कम हो सकती हैं। सरकार का कहना है कि इससे जेंडर थ्योरी फैल सकती है, जबकि विपक्ष का आरोप है कि इससे इटली समाज को पीछे धकेला जा रहा है।

इटली में महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी चिंता का विषय है। महिलाओं की लेबर में भागीदारी केवल 41.5% है और कई सेक्टरों में महिलाओं को पुरुषों से लगभग 40% कम वेतन मिलता है। केवल 7% कंपनियों में महिला CEO हैं। अस्थायी कॉन्ट्रैक्ट और कम वेतन ने युवा महिलाओं का जीवन अस्थिर कर दिया है। इसके चलते कई महिलाओं को उम्मीद थी कि सरकार वेतन असमानता और महिला सुरक्षा पर सुधार करेगी, लेकिन निराशा बढ़ती जा रही है।

इटली में महिलाओं पर दबाव सिर्फ हिंसा तक सीमित नहीं है। देश की जन्मदर लगातार गिर रही है, 2025 में यह केवल 1.13 है। सरकार का कहना है कि महिलाएँ करियर की वजह से माँ बनने में देर कर रही हैं, लेकिन महिलाओं का कहना है कि जब नौकरी अस्थिर है और वेतन सही नहीं है, तो बच्चे की जिम्मेदारी कैसे निभाई जा सकती है।