नई दिल्ली: दुनिया की सबसे प्राचीन पर्वत शृंखलाओं में शामिल अरावली एक बार फिर चर्चा के केंद्र में है। इस बीच केंद्र सरकार ने रविवार को उन खबरों का खंडन किया, जिनमें यह दावा किया गया था कि अरावली की परिभाषा में बदलाव कर बड़े पैमाने पर खनन का रास्ता खोला जा रहा है। सरकार ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में नई खनन लीज पर पहले ही रोक लगा रखी है

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकृत नई परिभाषा के तहत अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा सुरक्षित क्षेत्र में आता है, जहां खनन की अनुमति नहीं है।

कैसे बढ़ा अरावली पर विवाद

बीते दिनों अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इस पर केंद्र सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखा। इसी जवाब के बाद से अरावली को लेकर राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा तेज हो गई। सोशल मीडिया पर भी ‘सेव अरावली’ अभियान शुरू हो गया, जिससे यह मुद्दा और अधिक सुर्खियों में आ गया।

सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार ने कहा कि अरावली की एक समान परिभाषा तय करने का उद्देश्य किसी भी तरह के दुरुपयोग को रोकना है। पहले अलग-अलग राज्यों में खनन को लेकर अलग-अलग नियम लागू थे। सरकार के अनुसार, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में कुल अरावली क्षेत्र का केवल 0.19 प्रतिशत हिस्सा ही कानूनी खनन के अंतर्गत आता है, जबकि दिल्ली में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित है।

सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि अरावली के लिए सबसे बड़ा खतरा अवैध और अनियंत्रित खनन है। इसे रोकने के लिए कड़ी निगरानी, प्रभावी प्रवर्तन और ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीकों के उपयोग की सिफारिश की गई है।

चार राज्यों के लिए एक समान नियम

सुप्रीम कोर्ट ने मई 2024 में एक समिति का गठन किया था, जिसमें राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली के प्रतिनिधि शामिल थे। समिति का उद्देश्य अरावली की एकरूप परिभाषा तय करना था। समिति ने पाया कि वर्ष 2006 से केवल राजस्थान में ही स्पष्ट नियम लागू थे, जिनके अनुसार 100 मीटर या उससे ऊंचे भू-भाग को पहाड़ी क्षेत्र माना जाता है और वहां खनन प्रतिबंधित है।

अब सभी चार राज्य इसी मानक को अपनाएंगे, साथ ही अतिरिक्त सुरक्षा उपाय भी लागू होंगे। इसके तहत 500 मीटर के भीतर स्थित पहाड़ियों को एक ही श्रृंखला माना जाएगा। खनन की अनुमति देने से पहले सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शों के आधार पर पहाड़ी क्षेत्रों की पहचान और कोर व अविनाशी क्षेत्रों का निर्धारण अनिवार्य होगा, जहां खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा।

सरकार ने यह भी साफ किया कि यह धारणा गलत है कि केवल 100 मीटर से ऊंचे क्षेत्रों में ही खनन रोका गया है। वास्तव में, पूरे पहाड़ी क्षेत्र और उसके आसपास के इलाकों में खनन पर सख्त रोक लागू होगी

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती बरकरार

सुप्रीम कोर्ट ने समिति की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए कहा है कि कोर और अविनाशी क्षेत्र, संरक्षित वन, इको-सेंसिटिव जोन, टाइगर रिजर्व और वेटलैंड्स में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। केवल कुछ चुनिंदा राष्ट्रीय महत्व के खनिजों के लिए सीमित छूट दी जा सकती है।

इसके साथ ही अदालत ने यह भी निर्देश दिया है कि भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) द्वारा सतत खनन प्रबंधन योजना तैयार होने तक अरावली क्षेत्र में कोई नई खनन लीज जारी नहीं की जाएगी