बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के दौरान राजनीतिक दल और एनजीओ प्रत्येक मतदाता की मदद करने में पीछे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट को सोमवार को चुनाव आयोग ने यह जानकारी दी। इसके विपरीत, कानूनी सहायता देने वाले स्वयंसेवकों ने पिछले पंद्रह दिनों में तीन हजार से अधिक ऑनलाइन दावे और आपत्तियां दर्ज कराई हैं।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जयमाल्या बागची की खंडपीठ ने इस आंकड़े पर हैरानी जताई और कहा कि 1 सितंबर तक कानूनी सहायता देने वाले स्वयंसेवकों ने 3,311 दावे, आपत्तियां और सुधार दर्ज किए, जिनमें से 1,027 मामलों का निपटारा हो चुका है।
चुनाव आयोग के वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने बताया कि स्वयंसेवकों द्वारा दर्ज किए गए 3,000 से अधिक दावे अब प्रक्रिया में लिए जा रहे हैं, जबकि किसी भी राजनीतिक दल या एनजीओ ने मतदाताओं को व्यक्तिगत रूप से मदद देने की पहल नहीं की।
सुप्रीम कोर्ट ने 1 सितंबर को बिहार के एसआईआर में उत्पन्न भ्रम को ‘अधिकतर विश्वास का मुद्दा’ बताया था और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण को निर्देश दिया था कि कानूनी मदद देने वाले स्वयंसेवकों को तैनात किया जाए। इन स्वयंसेवकों को दावे और आपत्तियां दर्ज कराने में सहायता करनी थी। मसौदा मतदाता सूची 1 अगस्त को प्रकाशित हुई थी। खंडपीठ ने कहा कि स्वयंसेवक संबंधित जिला न्यायाधीशों को गोपनीय रिपोर्ट सौंपेंगे और पूरे राज्य के आंकड़ों पर 8 सितंबर को विचार किया जाएगा।