देश के लगभग 30 प्रतिष्ठित नागरिकों ने केंद्र से छत्तीसगढ़ या किसी अन्य आदिवासी क्षेत्र में हवाई हमले नहीं करने और सुरक्षा शिविरों, फर्जी मुठभेड़ों और सामूहिक गिरफ्तारी के विरोध में ग्रामीणों के साथ बातचीत करने का आग्रह किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के आदिवासियों ने आरोप लगाया है कि 14 अप्रैल और 15 अप्रैल की दरम्यानी रात पुलिस ने माओवादियों को निशाना बनाने की कोशिश में उनके गांवों के आसपास के जंगलों में हवाई हमले किए और बमबारी की।
रिपोर्टों का हवाला देते हुए इन लोगों ने एक बयान में कहा है कि सरकार को छत्तीसगढ़ या किसी अन्य आदिवासी क्षेत्र में हवाई हमले नहीं करने चाहिए। उन्होंने सरकार से सुरक्षा शिविरों, फर्जी मुठभेड़ों और सामूहिक गिरफ्तारी का विरोध कर रहे ग्रामीणों के साथ बातचीत करने का भी आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामले देखे जाएं। एक से अधिक न्यायिक जांच, सीबीआई, एनएचआरसी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्पष्ट निष्कर्षों के बावजूद कि सुरक्षा बलों द्वारा छत्तीसगढ़ में मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया गया है, इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
इन्होंने कहा कि सरकार को सरकेगुडा और एडेसमेटा में सुरक्षा बलों द्वारा सामूहिक हत्याओं के निर्दोष पीड़ितों और ताड़मेटला, तिमापुरम और मोरपल्ली में सामूहिक आगजनी, बलात्कार और हत्याओं के पीड़ितों को न्याय देना चाहिए। सुरक्षा बलों द्वारा हत्या, यौन उत्पीड़न और बलात्कार के मामले जो एनएचआरसी और अदालतों के संज्ञान में लाए गए हैं, उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
उन्होंने यह भी मांग की कि अतिरिक्त बटालियनों और सुरक्षा शिविरों के साथ बस्तर के सैन्यीकरण को रोक दिया जाना चाहिए और जिला रिजर्व समूह (डीआरजी) को भंग कर दिया जाना चाहिए जैसा कि 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था। बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस की तीस्ता सीतलवाड़, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन (सीबीए) की सदस्य बेला भाटिया, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला संघ की कविता कृष्णन और सहेली समूह की सदस्य वाणी सुब्रमण्यम शामिल हैं।