राजधानी के भूजल की गुणवत्ता को लेकर एक चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिल्ली के कई इलाकों में भूजल में नाइट्रेट, फ्लोराइड, लवणता, क्लोराइड, आयरन, आर्सेनिक और यूरेनियम जैसे खतरनाक तत्व निर्धारित मानकों से कहीं अधिक पाए गए हैं। यह रिपोर्ट राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को सौंपी गई है, जिसने राजधानी में भूजल की बिगड़ती स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा
‘एनुअल ग्राउंड वॉटर क्वालिटी रिपोर्ट 2024’ के मुताबिक, इस तरह का दूषित पानी लंबे समय तक सेवन करने से उच्च रक्तचाप, किडनी संबंधी रोग, दांतों और हड्डियों की कमजोरी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। बच्चों में इसका असर और भी गंभीर हो सकता है। इसके अलावा, खराब पानी का असर खेती पर भी पड़ रहा है, क्योंकि अधिक सोडियम और अन्य रासायनिक तत्व मिट्टी की उर्वरता और फसलों की पैदावार को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
103 सैंपलों की जांच में सामने आई हकीकत
यह मामला एक मीडिया रिपोर्ट के आधार पर एनजीटी के संज्ञान में आया था, जिसके बाद सीजीडब्ल्यूबी से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई। रिपोर्ट में वर्ष 2023 के पूर्व-मानसून (मई) के दौरान लिए गए 103 भूजल नमूनों का विश्लेषण किया गया। जांच में दिल्ली के कई जिलों में पानी की गुणवत्ता मानकों से नीचे पाई गई।
नमक की मात्रा सबसे बड़ी समस्या
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली देश के सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों में शामिल है। करीब 23.30 प्रतिशत नमूनों में लवणता (सलिनिटी) तय सीमा से अधिक पाई गई। उत्तर, उत्तर-पश्चिम, शाहदरा, दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम जिले इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। मानसून से पहले और बाद की तुलना में हालात और बिगड़े हैं। अधिक नमक वाला पानी पीने से हाई ब्लड प्रेशर और किडनी की बीमारियों का खतरा बढ़ता है, जबकि खेती में इससे फसलें प्रभावित होती हैं।
नाइट्रेट और क्लोराइड भी चिंता का कारण
करीब 20.39 प्रतिशत सैंपलों में नाइट्रेट की मात्रा मानक से ज्यादा पाई गई। नई दिल्ली, उत्तर, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम जिले इससे प्रभावित हैं। नाइट्रेट आमतौर पर रासायनिक खाद और प्रदूषण से पानी में पहुंचता है, जिससे कैंसर और शिशुओं में ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा रहता है। वहीं, 17.48 प्रतिशत नमूनों में क्लोराइड की मात्रा अधिक मिली, जिससे पानी का स्वाद बिगड़ता है और लंबे समय में किडनी पर असर पड़ सकता है।
रेडियोएक्टिव तत्वों की मौजूदगी
रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 7.77 प्रतिशत सैंपलों में यूरेनियम पाया गया, जो एक रेडियोएक्टिव तत्व है। उत्तर, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम और पश्चिम जिले इससे प्रभावित हैं। लंबे समय तक यूरेनियम युक्त पानी पीने से किडनी खराब होने और कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा, पूर्व और दक्षिण-पूर्व जिलों में आयरन और आर्सेनिक की मात्रा भी अधिक पाई गई है, जो पेट की समस्याओं और त्वचा कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बन सकती है।
फ्लोराइड से हड्डियों को नुकसान
करीब 16.50 प्रतिशत सैंपलों में फ्लोराइड की मात्रा तय सीमा से अधिक पाई गई। नई दिल्ली, उत्तर, उत्तर-पश्चिम, शाहदरा, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम जिले इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। अधिक फ्लोराइड वाला पानी पीने से दांतों पर दाग पड़ सकते हैं और हड्डियां कमजोर हो सकती हैं, खासकर बच्चों में इसका असर गंभीर होता है।
खेती पर भी पड़ रहा असर
खराब भूजल का असर सिंचाई पर भी साफ दिख रहा है। एसएआर और आरएससी मानकों के आधार पर जांच में पाया गया कि 12.62 प्रतिशत सैंपलों में सोडियम का स्तर मध्यम है, जबकि 7.77 प्रतिशत सैंपल सिंचाई के लिहाज से असुरक्षित हैं। इससे सेंट्रल, नई दिल्ली, उत्तर, उत्तर-पश्चिम, दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम जिले प्रभावित हो रहे हैं।
रिपोर्ट की अहम सिफारिशें
सीजीडब्ल्यूबी ने भूजल की स्थिति सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत बताई है। रिपोर्ट में रासायनिक खाद के सीमित उपयोग, वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने और दूषित इलाकों में सुरक्षित वैकल्पिक जल स्रोत उपलब्ध कराने की सिफारिश की गई है। साथ ही, सरकार, वैज्ञानिकों और आम नागरिकों के संयुक्त प्रयासों पर जोर दिया गया है। बोर्ड ने यह भी बताया कि राष्ट्रीय स्तर पर भूजल गुणवत्ता पर एक विस्तृत रिपोर्ट सितंबर 2026 तक जारी की जाएगी, जिसमें दीर्घकालिक समाधान सुझाए जाएंगे।