नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बीडीएस (बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी) में दाखिले के नियमों की अनदेखी को गंभीर मानते हुए राजस्थान के 10 निजी डेंटल कॉलेजों पर कड़ी कार्रवाई की है। अदालत ने प्रत्येक कॉलेज पर 10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जानबूझकर नियमों का उल्लंघन कर मेडिकल शिक्षा के मानकों से समझौता नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई और न्यायमूर्ति जेके महेश्वरी की पीठ ने कॉलेजों के साथ-साथ राज्य सरकार की भूमिका पर भी नाराजगी जताई। बीडीएस में शैक्षणिक सत्र 2016-17 के दौरान कानूनी प्रक्रिया का पालन न करने पर राजस्थान सरकार को भी फटकार लगाते हुए 10 लाख रुपये राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (आरएसएलएसए) में जमा करने का आदेश दिया गया।
क्या है पूरा मामला
बीडीएस में दाखिले के लिए एनईईटी परीक्षा में न्यूनतम योग्यता प्रतिशत तय है। आरोप है कि राजस्थान सरकार ने बिना वैधानिक अधिकार के पहले 10 प्रतिशत और फिर पांच प्रतिशत की अतिरिक्त छूट दे दी। इसके चलते ऐसे कई छात्रों को प्रवेश मिल गया, जो निर्धारित पात्रता पर खरे नहीं उतरते थे। मामला यहीं नहीं रुका—कुछ निजी कॉलेजों ने इस छूट की सीमा से भी आगे बढ़कर नियमों के विपरीत दाखिले किए।
छात्रों को राहत, व्यवस्था पर सवाल
अदालत ने मानवीय आधार पर 2016-17 में दाखिला लेने वाले छात्रों को राहत दी है। अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बीडीएस डिग्रियों को वैध कर दिया। हालांकि, इन छात्रों को राजस्थान हाईकोर्ट में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है, जिसमें आपदा, महामारी या आपात स्थिति में निःशुल्क सेवा देने की प्रतिबद्धता देनी होगी।
जुर्माने की राशि का उपयोग
कोर्ट के आदेश के अनुसार, सभी संबंधित कॉलेजों को आठ सप्ताह के भीतर जुर्माने की राशि आरएसएलएसए में जमा करनी होगी। यह धनराशि वन स्टॉप सेंटर, नारी निकेतन, वृद्धाश्रम और बाल देखभाल संस्थानों सहित सामाजिक कल्याण से जुड़े कार्यों में खर्च की जाएगी।