पूर्व मंत्री और सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां को आरएसएस, भाजपा और शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद से संबंधित मानहानि के मामले में एमपी एमएलए कोर्ट के विशेष एसीजेएम आलोक वर्मा ने शुक्रवार को आरोपों से बरी कर दिया। कोर्ट ने यह फैसला इस आधार पर सुनाया कि अभियोजन पक्ष ने प्रासंगिक गवाहों को पेश नहीं किया और जो दस्तावेज पेश किए गए वे कानून के अनुसार मान्य साक्ष्य नहीं माने जा सकते।

कोर्ट ने कहा कि अभियोजन ने जिन कागजात को सबूत के तौर पर प्रस्तुत किया, वे मूल नहीं थे, और केवल छायाप्रति के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। साथ ही वादी इस मामले का पीड़ित नहीं था और उसके पास मुकदमा दायर करने की वैध अनुमति भी नहीं थी।

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अभियोजन द्वारा पेश किए गए गवाह आरोपी के खिलाफ आरोप साबित करने में असमर्थ रहे, जबकि विवेचना में हुई त्रुटियों और आवश्यक साक्ष्य को पेश न करने के कारण आजम खां को लाभ मिला।

मामले का इतिहास
यह मामला फरवरी 2019 में हजरतगंज थाने में दर्ज कराया गया था। वादी अल्लामा जमीर नकवी ने आरोप लगाया था कि 2014 में आजम खां ने अपने सरकारी लेटरहेड और मुहर का इस्तेमाल करते हुए छह पत्रों के माध्यम से आरएसएस, भाजपा और शिया धर्मगुरु कल्बे जवाद तथा उनके निजी सचिव इमरान नकवी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की थीं।

वादी ने दावा किया कि इस कार्रवाई से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संबंधित संस्थाओं की छवि धूमिल हुई। आरोप था कि सपा सरकार में मंत्री रहते हुए आजम ने सरकारी साधनों का दुरुपयोग किया।

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आजम के प्रेस रिलीज से किसी भी समुदाय या व्यक्तियों को वास्तविक नुकसान नहीं हुआ और घटना के तथ्यों के आधार पर किसी प्रकार का दोष सिद्ध नहीं होता।