भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को सलाह दी है कि वे मौद्रिक नीति में हाल ही में की गई दरों में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक शीघ्र पहुंचाएं। केंद्रीय बैंक के जून 2025 बुलेटिन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, वर्तमान आर्थिक और वित्तीय परिस्थितियां इस दिशा में अनुकूल बनी हुई हैं।
आरबीआई ने इस महीने की शुरुआत में रेपो दर में 50 आधार अंकों की कमी की थी। इसके अतिरिक्त, वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को चरणबद्ध तरीके से 100 आधार अंक घटाकर 3% करने की घोषणा की गई थी। इससे दिसंबर 2025 तक बैंकिंग प्रणाली में लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त तरलता उपलब्ध कराई जाएगी, जिससे बैंकों की फंडिंग लागत में कमी आने की उम्मीद है।
प्रमुख बैंकों ने लागू की ब्याज दरों में कटौती
भारतीय स्टेट बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और एचडीएफसी बैंक सहित कई अग्रणी बैंकों ने रेपो दर में कटौती के तुरंत बाद अपनी ऋण दरों में संशोधन किया और ग्राहकों को उसका लाभ प्रदान किया।
लेख के अनुसार, फरवरी से अप्रैल 2025 के दौरान नीतिगत दरों में कटौती का असर बैंकों की बाहरी बेंचमार्क आधारित उधार दरों (ईबीएलआर) और सीमांत लागत आधारित फंडिंग दर (एमसीएलआर) में दिखाई दिया।
उधारी और जमा दरों में बदलाव के आँकड़े
इस अवधि में बैंकों द्वारा दिए जा रहे नए और बकाया रुपया ऋणों की भारित औसत उधारी दर (WALR) में क्रमशः 6 और 17 आधार अंकों की गिरावट दर्ज की गई। वहीं, नई और पूर्व की सावधि जमाओं पर लागू घरेलू जमा दरों (WADTDRs) में क्रमशः 27 और 1 आधार अंकों की कमी देखी गई।
लेख में यह भी बताया गया कि इस मौद्रिक सहजता चक्र के दौरान, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने निजी बैंकों की तुलना में नई सावधि जमा दरों में अपेक्षाकृत अधिक कमी की है। वहीं, बकाया ऋणों पर ब्याज दरों में अधिक प्रभाव निजी बैंकों में देखने को मिला।
आरबीआई ने स्पष्ट किया लेख का उद्देश्य
आरबीआई ने यह भी स्पष्ट किया है कि बुलेटिन में प्रकाशित यह विश्लेषण लेखकों के निजी विचार हैं और इन्हें आरबीआई की आधिकारिक राय के रूप में न देखा जाए।
कुल मिलाकर, यह लेख बैंकों को यह संकेत देता है कि नीतिगत राहत का प्रभाव उपभोक्ताओं तक पहुंचाना आवश्यक है ताकि मौद्रिक नीति का उद्देश्य पूर्ण हो सके।
Read News: बांगुई: स्कूल में विस्फोट और भगदड़ से 29 छात्रों की मौत, 260 से अधिक घायल