मुजफ्फरनगर। चातुर्वेद संस्कृत प्रचार संस्थानम्, काशी, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान, लखनऊ और भागवत पीठ शुकतीर्थ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित श्रीमद्भागवत संगोष्ठी का सफल समापन हो गया। इस आयोजन में भारतीय ज्ञान परंपरा के परिप्रेक्ष्य में भागवत के विविध आयामों पर विचार-विमर्श किया गया। इस दौरान कुल 40 से अधिक शोधपत्रों का वाचन हुआ और कई विशिष्ट वक्ताओं ने महत्वपूर्ण व्याख्यान दिए।
मुख्य वक्ता पद्मश्री प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र ने कहा कि चातुर्वेद संस्कृत प्रचार संस्थान का यह संकल्प कि वह प्रतिवर्ष विभिन्न तीर्थों में जाकर शास्त्रीय संगोष्ठियों का आयोजन करेगा, संस्कृत शास्त्रों के संरक्षण और भारतीय संस्कृति के समाज से जुड़ाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि जब भक्त हृदय में ईश्वर-निष्ठा रखते हैं, तभी भगवान की कृपा प्रवाहित होती है, जो प्रपत्ति के रूप में हृदय में स्थापित होती है।
विशिष्ट वक्ता बिहार के छपरा से आए प्रो. वैद्यनाथ मिश्र ने शुकतीर्थ को संस्कृत और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बताया और कहा कि यहां शोधार्थियों को संगोष्ठियों से नई प्रेरणा मिलेगी। केंद्रीय तिब्बती विश्वविद्यालय, सारनाथ के संस्कृत शब्द विद्या संकाय प्रमुख धर्मदत्त चतुर्वेदी ने बताया कि संस्थान पिछले 26 वर्षों से संस्कृत संवर्धन के प्रयासों में लगातार लगा हुआ है और भागवत धरा पर ऐसा आयोजन सभी के पुण्यों का विशेष फल है।
चातुर्वेद संस्कृत प्रचार संस्थानम्, काशी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. हरिप्रसाद अधिकारी ने कहा कि भागवत का अध्ययन राष्ट्र के उत्थान और समाज के सही मार्गदर्शन में योगदान करता है। भागवत पीठ के ट्रस्टी ओमदत्त देव ने संगोष्ठी को संस्कृत विद्यार्थियों के लिए साधना का मार्गदर्शन बताया। कार्यक्रम में श्री शुकदेव संस्कृत विद्यालय के प्रधानाचार्य गिरीश चंद्र उप्रेती ने आभार व्यक्त किया। संचालन डॉ. चन्द्रकांत दत्त शुक्ल ने किया।
संगोष्ठी में रीता तिवारी, मंजुलता शर्मा, डॉ. राजेन्द्र त्रिपाठी, डॉ. धनन्जय मणि त्रिपाठी, डॉ. इन्द्रेश पाण्डेय, डॉ. तपस्वी पाराशर, डॉ. योगेन्द्र कुमार, डॉ. मूलचन्द्र शुक्ल, डॉ. प्रमोद कुमार मिश्र और डॉ. खगेन्द्र मिश्र उपस्थित रहे। आयोजन में ठाकुर प्रसाद, युवराज, दीपक मिश्रा का सहयोग भी सराहनीय रहा।