संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक संवेदनशील बैठक में ईरान और अमेरिका ने कूटनीतिक समाधान की बात तो दोहराई, लेकिन परमाणु मुद्दे पर दोनों देशों के बीच मतभेद अब भी बरकरार हैं। बैठक के दौरान यह साफ दिखा कि संवाद की इच्छा के बावजूद भरोसे की खाई पाटना फिलहाल आसान नहीं है।
दरअसल, जून में ईरान और इस्राइल के बीच 12 दिनों तक चले युद्ध के बाद वॉशिंगटन और तेहरान के बीच परमाणु वार्ता का छठा दौर प्रस्तावित था। इसी दौरान अमेरिका ने इस्राइल के साथ मिलकर ईरान के कथित परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए, जिसके बाद यह बातचीत रद्द हो गई। इसके कुछ ही महीनों बाद सितंबर में ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने अमेरिका के साथ किसी भी प्रत्यक्ष परमाणु वार्ता से इनकार कर दिया था।
ईरान ने पश्चिमी देशों से भरोसा बहाल करने की अपील की
संयुक्त राष्ट्र में ईरान के राजदूत अमीर सईद इरावानी ने सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए कहा कि उनका देश सिद्धांतों पर आधारित कूटनीति और वास्तविक संवाद के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि अब फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका को अपने रुख में बदलाव लाते हुए विश्वास बहाली के लिए ठोस और विश्वसनीय कदम उठाने चाहिए।
वहीं, अमेरिका की ओर से संयुक्त राष्ट्र मिशन की काउंसलर मॉर्गन ओर्टागस ने कहा कि वाशिंगटन ईरान के साथ औपचारिक वार्ता के लिए तैयार है, बशर्ते तेहरान प्रत्यक्ष और गंभीर बातचीत के लिए आगे आए। उन्होंने यह भी कहा कि पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दोनों कार्यकालों में ईरान की ओर कूटनीति का हाथ बढ़ाया था, लेकिन इसका सकारात्मक जवाब नहीं मिला।
परमाणु संवर्धन पर टकराव कायम
अमेरिकी प्रतिनिधि ने दो टूक कहा कि ट्रंप प्रशासन का रुख स्पष्ट है कि ईरान के भीतर परमाणु सामग्री का संवर्धन स्वीकार्य नहीं है। इसी मुद्दे पर ईरान और अमेरिका के बीच सबसे बड़ा मतभेद बना हुआ है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए ईरानी राजदूत इरावानी ने कहा कि शून्य संवर्धन की अमेरिकी मांग 2015 के परमाणु समझौते के तहत ईरान को मिले अधिकारों के खिलाफ है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ईरान किसी भी तरह के दबाव या धमकी के आगे झुकने वाला नहीं है।
बैठक के बाद संकेत मिले कि कूटनीति के दरवाजे पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं, लेकिन परमाणु कार्यक्रम को लेकर सख्त रुख के कारण दोनों देशों के बीच सहमति की राह अभी भी कठिन बनी हुई है।